Friday, 26 May 2017

राजकीय कर्मचारियों के लिए आचरण नियमावली.

               "सामान्यत सभी कर्मचारी एक राजकीय सेवक के रूप में अपने अधिकारों की जानकारी तो रखते हैं किन्तु अनेक कर्तव्यों, उत्तरदायित्व एवं आचरण की सीमाओं को कई बार गंभीरता से नहीं लेते, जिस कारण अनेक अवसरों पर लोक सेवकों के गलत आचरण के कारण सरकार की छवि धूमिल होती है.  एक लोक सेवक होने के नाते मेरी अपने अनेक सहकर्मियों से कर्मचारी आचरण नियमावली के सन्दर्भ में वार्तालाप होता रहता है और मैंने पाया है की कई कर्मचारियों को लोक सेवक आचरण नियमावली की भलीभांति   जानकारी नही है.  प्रस्तुत लेख के अध्ययन के उपरान्त राज्य कार्मिकों को आचरण नियमावली के महत्वपूर्ण नियमों की जानकारी  हो सकेगी तथा अधिकारीगण  अपने अधीनस्थ कार्मिकों को इन नियमों के सम्बन्ध में समुचित जानकारी देकर उनका मार्गदर्शन कर सकेंगे, ऐसी मेरी आशा है."           सुशील डोभाल.


 आचरण नियमावली
            लोक सेवकों से कर्तव्यपरायण, ईमानदार, अनुशासित एवं चरित्रवान होना अपेक्षित है। प्रत्येक सरकारी सेवक के आचरण से शासन की छवि प्रतिबिंबित होती है क्योंकि सरकार एवं कर्मचारी के बीच स्वामी और सेवक का सम्बन्ध होता है। स्वामी द्वारा अपने सेवकों से यह अपेक्षा किया जाना स्वाभाविक है कि सेवक अपने कार्य एवं व्यवहार इस प्रकार व्यवहृत करें कि उससे स्वामी की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। सेवकों का कोई भी दुराकरण सरकार की छवि को धूमिल कर सकता है। अत: संविधान के अनुच्छेद 309 के अन्तर्गत प्रदत्त अधिकार का प्रयोग करते हुए श्री राज्यपाल अपने सेवकों को जनता के प्रति कर्तव्यों के निर्वहन करने में आचरण विनियमन करने के लिये आचरण नियमावली का निर्माण करते हैं। प्रस्तुत लेख में उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के सरकारी सेवक आचरण नियमावली के नियमों की जानकारी देने का प्रयास किया गया है।
उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियमावली 
नियम 1 - संक्षिप्त नाम - ये नियम उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियमावली 1956 कहलाएगें।
नियम 2 - परिभाषाएँ - जब तक प्रसंग से कोई अन्य अर्थ अपेक्षित न हो,  इन नियमों में -
  1. सरकार से तात्पर्य उत्तर प्रदेश सरकार से है।
  2. सरकारी सेवक से तात्पर्य उस व्यक्ति से है, उत्तर प्रदेश राज्य के कार्यों के सम्बद्ध लोक सेवाओं और पदों पर नियुक्त हो।
व्याख्या :-      इस बात को ध्यान में रखना होगा कि ऐसा सरकारी कर्मचारी किसी विशेष समय से किसी कम्पनी, निगम, संगठन, स्थानीय प्राधिकारी, केन्द्र सरकार या किसी अन्य राज्य सरकार में प्रति-नियुक्ति पर हो अथवा उसकी सेवा कुछ समय के लिये उस राज्य को अर्पित कर दी गयी हो, उस अवस्था में भी वह उत्तर प्रदेश के सरकारी कर्मचारी की परिभाषा के अन्तर्गत ही आयेगा।
  1. परिवार के सदस्य के अंतर्गत सरकारी सेवक की पत्नी, उसका लड़का, सौतेला लड़का, अविवाहित लड़की या अविवाहित सौतेली लड़की चाहे वह उसके साथ निवास करती हो या नहीं, और महिला सेवक के संबंध में उसके साथ रहने वाला उस पर आश्रित उसका पति।
व्याख्या :-    उपरोक्त में से वही परिवार के सदस्य होंगे जो सरकारी कर्मचारी पर आश्रित हों। यह उल्लेखनीय है कि परिवार का सदस्य होने के लिये आयु महत्वपूर्ण नहीं है। उदाहरण के लिये यदि किसी सरकारी सेवक के पुत्र की आयु 24 वर्ष है तथा वह अभी शिक्षा प्राप्त कर रहा है, वह इसके लिये अपने पिता पर आश्रित है तो वह परिवार का सदस्य है। पर यदि वह कहीं सेवा में है या उसका अपना व्यापार है तथा भरण पोषण के लिये सरकारी सेवक पर आश्रित* नहीं है तो परिवार का सदस्य नहीं माना जायेगा।
*सरकारी सेवक पर आश्रित :-
                ऊपर स्पष्ट किया गया है कि जो भी सदस्य सरकारी सेवक पर आश्रित होगा वही परिवार का सदस्य माना जायेगा। उपरोक्त परिभाषा के सम्बन्ध में यह बताना भी उचित होगा कि ऐसी पत्नी या पति परिवार के सदस्य नहीं माने जायेंगे जो वैध रूप से सरकारी सेवक के परिवार से अलग हो गये हों अथवा ऐसे पुत्र, सौतेले पुत्र,  अविवाहित पुत्री या सौतेली पुत्री भी परिवार के सदस्य नहीं होंगे, जो सरकारी सेवक पर अब किसी भी प्रकार से आश्रित नहीं है या जिनकी अभिरक्षा से विधिक रूप से सरकारी सेवक द्वारा बेदखल कर दिया गया हो।
                इस सन्दर्भ में 'आश्रित' शब्द का अर्थ स्पष्ट करना आवश्यक है। आश्रित का अर्थ किसी ऐसे व्यक्ति से है जो सरकारी सेवक पर भरण पोषण या जीवन यापन के लिये पूर्ण रूप से निर्भर हो। परिवार के सदस्यों के संदर्भ में जिनके आचरण के लिये सरकारी सेवक जिम्मेदार हो, उनका अपने भरण पोषण के लिये सरकारी सेवक पर आश्रित होना आवश्यक है।
नियम 3 में कहा गया है कि
  1. प्रत्येक सरकारी सेवक पूरे समय परम सत्यनिष्ठा तथा कर्तव्य परायणता से कार्य करता रहेगा।
  2. प्रत्येक सरकारी सेवक पूरे समय व्यवहार तथा आचरण विनियमित करने वाले विशिष्ट या अन्तनिर्हित शासकीय आदेशों के अनुसार आचरण करेगा।
                वस्तुत: सरकारी सेवक आचरण नियमावली का नियम-3 सबसे महत्वपूर्ण तथा सारगर्भित है। इस नियम में प्रयुक्त किये गये कुछ बिन्दुओं पर विश्लेषण आवश्यक है।
                पूर्ण सत्यनिष्ठा का अर्थ सच्चाई, ईमानादारी एवं शुद्धता है। यदि किसी सरकारी सेवक से पूर्ण सत्यनिष्ठा बनाये रखने की अपेक्षा की जाय तो यह कहा जायेगा कि वह अपने को उस प्रशासकीय शिष्टता के घेरे में रखे जिसे सभ्य प्रशासन कहा जाता है। घूस लेना या अवैध पारितोषिक या लाभ की माँग करना, अपनी आय के अनुपात से अधिक की सम्पत्ति क्रय करना या गलत लेखा तैयार करना, दुर्विनियोजन करना, गलत व्यक्ति को प्रोत्साहित करना आदि कुछ ऐसे उदाहरण है, जो सत्यनिष्ठा के विपरीत हैं।
                कर्तव्य परायणता की परिभाषा सेवा के प्रति पूर्ण निष्ठा से सम्बन्धित है। ऐसा सरकारी कार्मिक जो कर्तव्य के प्रति समर्पित नहीं है, दुराचरण का दोषी है। वास्तव में सत्यनिष्ठा व कर्तव्य परायणता एक ही के प्रतिरूप हैं, जिनका एक-दूसरे के बगैर अस्तित्व नहीं है।
विशिष्ट आदेश
                शासन द्वारा समय-समय पर जारी किये गये वैधानिक आदेश हैं। हर सरकारी सेवक चाहे वह अस्थाई हो अथवा स्थाई या अन्य किसी प्रक्रिया द्वारा नियोजित हो, को ऐसे आदेशों का अनुपालन करना आवश्यक है।
अन्तर्निहित शासकीय आदेश
                जारी किये गये आदेशों के अतिरिक्त कुछ अलिखित आचरण संहिता भी है। अलिखित आचरण संहिता के अर्थ सर्वत्र मान्य ऐसे आचरण से है, जिसका पालन सरकारी सेवक के लिये आवश्यक है। उदाहरण के लिये सरकारी सेवक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह शालीनता की मर्यादा में रहे। वह आज्ञाकारी, निष्ठावान, सावधान, ईमानदार, समय का ध्यान रखने वाला, अच्छे व्यवहार करने वाला व अपने कार्य के निष्पादन में दक्ष हो तथा सहकर्मियों के साथ सम्मानजनक व्यवहार व आचरण रखे.
              यदि सरकारी सेवक सत्यनिष्ठा व कर्तव्य परायण नहीं है, यदि वह विशिष्ट या ध्वनित आदेशों का अनुपालन नहीं करता है तो उसका कृत्य दुराचरण की श्रेणी में आयेगा। यह भी ध्यान रखे जाने की बात है कि दुराचरण केवल सरकारी कार्य से ही संबंधित नहीं है। निजी जीवन का आचरण भी दुराचरण हो सकता है। यदि कोई कार्मिक अपने निजी जीवन में कोई ऐसा कृत्य करता है जो सरकारी सेवा के समय नहीं किया गया है तथा वह कृत्य अनैतिक है, तो भी उसका कृत्य दुराचरण की श्रेणी में आयेगा। वस्तुत: राज्य अपने कार्मिकों से आचरण के कतिपय मानक की अपेक्षा न केवल कर्मचारियों के सरकारी कार्यो वरन निजी जीवन में भी कर सकता है।
                वर्ष के अन्त में सरकारी कर्मचारियों की गोपनीय प्रविष्टि के साथ-2 सत्यनिष्ठा पर भी रिपोर्ट दी जाती है, जिसका रूप-पत्र निम्नवत् है :-
                'ईमानदारी के लिये श्री --------------- की ख्याति अच्छी है और मेरी जानकारी में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे श्री -------------- की सत्यनिष्ठा पर संदेह किया जा सके अत: उनकी सत्यनिष्ठा प्रमाणित।'
नियम 3-क कामकाजी महिलाओं के यौन उत्पीड़न का प्रतिषेध -
    (1)    कोई सरकारी सेवक किसी महिला के कार्यस्थल पर उसके यौन उत्पीड़न के किसी कार्य में संलिप्त नहीं होगा।
     (2)    प्रत्येक सरकारी सेवक जो किसी कार्य स्थल का प्रभारी हो, उस कार्यस्थल पर किसी महिला के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिये उपयुक्त कदम उठायेगा।
स्पष्टीकरण- इस नियम के लिये 'यौन उत्पीड़न' में प्रत्यक्षत: या अन्यथा काम वासना प्रेरित कोई ऐसा अशोभनीय व्यवहार सम्मिलित है जो कि-
        (क)    शारीरिक स्पर्श और कामोदीप्त सम्बन्धी चेष्टाएँ,
        (ख)    यौन स्वीकृति की माँग या प्रार्थना,
        (ग)    काम वासना-प्रेरित फब्तियाँ,
        (घ)    किसी कामोत्तेजक कार्य व्यवहार या सामग्री का प्रदर्शन या
        (ङ)    यौन सम्बन्धी कोई अन्य अशोभनीय शारीरिक, मौखिक या सांकेतिक आचरण।
नियम 4-    सभी लोगों के साथ समान व्यवहार
    (क)    प्रत्येक सरकारी सेवक, सभी लोगों के साथ, चाहे वे किसी भी जाति, पंथ या धर्म के क्यों न हों, समान व्यवहार करेगा।
     (ख)    कोई भी सरकारी सेवक किसी भी रूप में अस्पृश्यता का आचरण नहीं करेगा।
नियम 4-क    मादकपान और औषधि का सेवन
                यह नियम सरकारी कर्मचारियों के मादकपान और औषधि के सेवन के संबंध में है। इस नियम के निम्न तथ्य महत्वपूर्ण हैं :-
  1. किसी भी क्षेत्र जहाँ वह उस समय विद्यमान हो मादकपान  अथवा औषधि सम्बन्धी जारी किसी भी आदेश का दृढ़ता से पालन करेगा।
  2. अपने कर्तव्य पालन के दौरान किसी मादक पान या औषधि से प्रभावित नहीं होगा और इस बात का ध्यान रखेगा कि वह किसी भी समय अपने कर्तव्य पालन में ऐसे पेय अथवा भेषज से प्रभावित नहीं होता है।
  3. सार्वजनिक स्थानों में किसी मादक पान अथवा औषधि के सेवन से अपने को विरत रखेगा।
  4. मादक पान करके किसी सार्वजनिक स्थान पर उपस्थित नहीं होगा।
  5. किसी भी मादकपान या औषधि का प्रयोग अत्यधिक मात्रा में नहीं करेगा।
                कुछ विशेष स्थानों को जैसे तीर्थस्थल अयोध्या आदि को मद्यनिषेध क्षेत्र घोषित किया गया है। वहाँ पर कोई भी व्यक्ति मादकपान नहीं कर सकता है। सरकारी सेवक भी यदि ऐसे स्थानों पर जायें तो उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह इन नियमों का दृढ़ता से पालन करें। इसके अतिरिक्त जैसा कि नियम में कहा गया है कि कोई सरकारी सेवक न तो किसी सार्वजनिक स्थान पर मदिरा पान करेगा, न ही अत्यधिक मात्रा में मादकपान करेगा। कभी-कभी कतिपय सरकारी सेवक इस नियम का अनुपालन करने में लापरवाही बरतते हैं। ऐसे अपवाद स्वरूप उदाहरण है कि सेवक कार्यालयों तक में नशे की हालत में आते हैं, इससे उनके कार्य करने की क्षमता तो घटती ही है, सरकार की छवि भी खराब होती है, साथ ही साथ ऐसे सरकारी सेवक जो मादकपान कर सार्वजनिक स्थानों पर या कार्यालयों में जाते हैं, ऐसी बात कह बैठते हैं, जिसकी उनसे अपेक्षा नहीं की जाती है। यह भी सम्भव है कि वह ऐसे अवसरों पर गोपनीय बात भी सबके सामने कह दें। अत: अन्य नियमों की भाँति इस नियम का अनुपालन सभी कर्मचारियों के लिये आवश्यक है।
नियम 5 -    राजनीति तथा चुनावों में भाग लेना
            इस नियम को दो भागों में बाँटा जा सकता है। नियम का पहला भाग सरकारी कर्मचारियों के लिये लागू है, तथा दूसरा भाग उसके परिवार के सदस्यों के लिये है।
        पहले भाग में कहा गया है कि
(अ)    कोई सरकारी सेवक किसी राजनीतिक दल अथवा किसी ऐसी संस्था जो राजनीति में भाग लेती है का न तो सदस्य होगा और न अन्यथा उससे सम्बन्ध रखेगा।
(ब)    वह किसी ऐसे आन्दोलन में या संस्था में हिस्सा नहीं लेगा, न उसकी सहायता के लिये चन्दा देगा या किसी रीति से उसकी मदद ही करेगा जो प्रत्यक्ष रूप से सरकार के प्रति विद्रोहात्मक कार्यवाहियाँ करने की प्रवृत्ति पैदा करें।
                उपरोक्त का अर्थ है सरकारी सेवक न तो किसी राजनैतिक दल से संबंधित रहेगा और  न ही ऐसी संस्था से, जो स्थापित सरकार के प्रति विद्रोह पैदा करवाने के लिये कार्य में संलग्न हो।
                सरकारी सेवक विधान मण्डल के किसी सदन अथवा स्थानीय निकाय के चुनावों में न तो भाग लेगा और न हस्तक्षेप करेगा और न ही उसके सम्बन्ध में अपने प्रभाव का प्रयोग करेगा।
                परन्तु सरकारी सेवक, जो किसी चुनाव में वोट डालने का अधिकारी है, वोट डालने हेतु अपने अधिकार का प्रयोग अवश्य कर सकेगा लेकिन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से यह संसूचित नहीं करेगा कि उसने किसे वोट दिया है। इस कार्य के लिये वह अपने शरीर, सम्पत्ति अथवा निवास स्थान पर कोई चुनाव चिन्ह का प्रदर्शन नहीं करेगा चाहे वह विकास कार्यों से संबंधित हो या अन्य किसी प्रकार।
                नियम का द्वितीय भाग सरकारी कर्मचारियों के परिवार के सदस्यों के सम्बन्ध में भी लागू है। सरकारी सेवक के परिवार के सदस्यों के लिये राजनीति में भाग लेने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
                प्रत्येक सरकारी सेवक का यह कर्तव्य होगा कि वह अपने परिवार के सदस्य को किसी ऐसे आन्दोलन में एवम् कार्य में जो विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति उच्छेदक है अथवा ऐसे कार्य करने की प्रवृत्ति प्रदान करते हैं, में हिस्सा लेना, चन्दा देने या किसी भी अन्य विधि से उसकी मदद करने से रोकने का प्रयास करेगा। यदि सरकारी सेवक ऐसा करने में असफल रहता है तो वह इन समस्त तथ्यों की जानकारी राज्य सरकार को देगा।
नियम 5-क प्रदर्शन एवं हड़ताल
प्रदर्शन
            सरकारी कर्मचारियों के लिये प्रदर्शन में रूकावट नहीं है, लेकिन वह ऐसा प्रदर्शन नहीं करेगा अथवा ऐसे प्रदर्शन में सम्मिलित नहीं होगा, जो भारत राष्ट्र की अखण्डता, प्रभुता एवं सुरक्षा के प्रतिकूल हो, जो भद्रता या नैतिक/मर्यादित आचरण के प्रतिकूल हो, स्थापित विधिक व्यवस्था के प्रतिकूल हो, शिष्टाचार या सदाचार के विरूद्ध हो, मा0 न्यायालयों की अवमानना तथा मानहानि करते हों, अपराध करने के लिये प्रेरित करते हों, विशेषकर विदेशी सरकार से मित्रता से संबंधित रिश्तों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हो।
हड़ताल

                सरकारी सेवक अपनी सेवा या किसी अन्य सरकारी सेवक की सेवा से संबंधित मामले में न तो हड़ताल करेंगें और न हड़ताल करने के लिये उत्प्रेरित करेंगे।

                शासन द्वारा समय-समय पर इस बात को स्पष्ट किया गया है कि काई भी सरकारी सेवक हड़ताल पर जाते हैं, तो उनके विरूद्ध इस नियम की अवहेलना के लिये कार्यवाही की जाये।
नियम 5-ख    सरकारी कर्मचारियों का संघों का सदस्य बनना
                कोई सरकारी सेवक किसी ऐसे संघ का न तो सदस्य बनेगा और न उसका सदस्य बना रहेगा, जिसके उद्देश्य  अथवा कार्य-कलाप भारत की प्रभुता तथा अखण्डता के हितों या सार्वजनिक सुव्यवस्था अथवा नैतिकता के प्रतिकूल हो।
नियम 6-    समाचार पत्रों अथवा रेडियो से सम्बन्ध

                कोई सरकारी सेवक बिना शासन की पूर्वानुमति के किसी समाचार पत्र अथवा अन्य नियतकालिक प्रकाशन का पूर्णत: अथवा अंशत: स्वामी नहीं बनेगा और न संचालन करेगा और न ही उसके सम्पादन या प्रबंधन में भाग लेगा। इसी प्रकार कोई सरकारी सेवक रेडियो प्रसारण में भाग नहीं लेगा अथवा किसी समाचार पत्र, पत्रिका में लेख नहीं भेजेगा, न ही गुमनाम या अपने नाम से अथवा किसी अन्य व्यक्ति के नाम से। यह नियम केवल उस स्थिति में नहीं लागू होंगे यदि सरकारी सेवक का प्रसारण एवम् लेख का स्वरूप साहित्यिक, कलात्मक अथवा वैज्ञानिक हो। ऐसे मामलों में‍ किसी स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होगी।

                इसी प्रकार प्रेस से वार्ता के संबंध में शासकीय अनुदेश जारी किये गये हैं।
नियम 7-    सरकार की आलोचना
                कोई भी सरकारी सेवक किसी रेडियो प्रसारण में अपने नाम से अथवा गुमनाम अथवा किसी अन्य नाम से किसी लेख अथवा समाचार पत्र में भेजे गये पत्र अथवा किसी सार्वजनिक स्थान में कोई ऐसे तथ्य की बात या मत व्यक्त नहीं करेगा -
    1-    जिससे वरिष्ठ पदाधिकारियों के किसी निर्णय की प्रतिकूल आलोचना होती हो, उत्तर प्रदेश सरकार, केन्द्र सरकार अथवा अन्य राज्य सरकार अथवा किसी स्थानीय प्राधिकारी की किसी नीति या कार्य की प्रतिकूल आलोचना होती हो अथवा
    2-    जिससे उत्तर प्रदेश सरकार अथवा केन्द्र सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के तथा विदेशी सरकार के सम्बन्धों में उलझन पैदा हो सकती हो।
नियम 8-    किसी समिति या अन्य प्राधिकारी के समक्ष साक्ष्य
    1-    उप नियम 3 में उपबन्धित स्थिति के अतिरिक्त, कोई सरकारी सेवक, सिवाय उस दशा के जबकि उसने सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, किसी व्यक्ति, समिति या प्राधिकारी द्वारा संचालित किसी जाँच के सम्बन्ध में साक्ष्य नही देगा।
    2-    उस दशा में, जबकि उप नियम 1 के अन्तर्गत कोई स्वीकृति प्रदान की गई हो, कोई सरकारी कर्मचारी, इस प्रकार के साक्ष्य देते समय, उत्तर प्रदेश सरकार, केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार की नीति की आलोचना नहीं करेगा।
    3-    इस नियम में दी हुई कोई बात, निम्नलिखित के सम्बन्ध में लागू न होगी -
        क-    साक्ष्य, जो प्रदेश सरकार, केन्द्रीय सरकार, उत्तर प्रदेश के विधान-मण्डल या संसद द्वारा नियुक्त किसी प्राधिकारी के सामने दी गयी हो, या
        ख-    साक्ष्य, जो किसी न्यायिक जाँच में दी गई हो।
नियम 9-    सूचना का अनधिकृत संचार
                सरकारी सेवकों के पास गोपनीय तथा अनेक महत्वपूर्ण दस्तावेज होते हैं। इस नियम के तहत कोई भी सरकारी सेवक प्रत्यक्ष या परोक्ष कोई सरकारी लेख अथवा सूचना किसी अन्य सरकारी सेवक को अथवा अन्य व्यक्ति को, जिसे ऐसा लेख रखने अथवा सूचना पाने का विधिक अधिकार नहीं है, को न तो देगा और न ही उसके पास जाने देगा। इन नियमों में यह  भी स्पष्ट किया गया है कि किसी भी पत्रावली की टीप का उद्धरण नहीं किया जा सकता है। लेकिन कतिपय मामलों में यह देखा गया है कि पत्रावलियों की टिप्पणियाँ कार्यालयों के बाहर चली जाती है, और कभी-कभी तो ये उद्धरण साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत होते हैं। ऐसे सरकारी सेवक जो इस प्रकार के उद्धरण दे रहे हैं, वे इस नियम के उल्लंघन के दोषी हैं।
                यदि किसी समय यह पाया जाता है कि इस प्रकार की सूचना राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़ी है, तो संबंधित सेवक शासकीय गुप्त बात अधिनियम 1923 के अन्तर्गत भी दोषी है।
नियम 10 -    चन्दे
                सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करके ही सरकारी सेवक चिकित्सीय सहायता, शिक्षा या सार्वजनिक उपयोगिता अथवा धर्मार्थ प्रयोजन के लिये चन्दा या वित्तीय सहायता माँग सकता है।
नियम 11-    भेंट
                कोई सरकारी सेवक बिना शासन की पूर्वानुमति के स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति की ओर से किसी ऐसे व्यक्ति से, जो उसका निकट संबंधी न हो कोई भेंट अनुग्रह धन या पुरस्कार स्वीकार नहीं करेगा, न ही अपने परिवार के सदस्यों को ऐसी भेंट अनुग्रह धन या भेंट स्वीकार करने की अनुमति देगा।
                विशेष अवसरों, यथा विवाह या किसी रीतिक अवसर पर सरकारी सेवक के मूल वेतन का दशांश या उससे कम मूल्य का एक उपहार स्वीकार कर सकते हैं, या परिवार के सदस्यों को इसे स्वीकार करने की अनुमति दे सकते हैं, यद्यपि इस प्रकार की उपहार-प्रवृत्ति को रोकने का भी हर सम्भव प्रयत्न होना चाहिये।
नियम 11-क    दहेज
                कोई भी सरकारी सेवक न तो दहेज लेगा न उसके देने या लेने के लिये दुष्प्रेरित करेगा और न ही वर-वधू या वर-वधू के माता पिता या उसके संरक्षक से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी दहेज की माँग करेगा।
                यदि कोई सरकारी सेवक अपने सरकारी कृत्यों का निर्वहन करते हुये नियमानुसार निर्धारित शुल्क के अतिरिक्त भेंट या अनुग्रह धन या पारितोषिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लेता है तो वह नियम-11 का ही उल्लंघन नहीं करता वरन् वह भारतीय दण्ड संहिता की धारा-161 तथा 165 तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के धारा-5 का भी दोषी है। सरकारी सेवक यदि अपने दायित्वों/कर्तव्यों के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार करता है, तथा दायित्व निर्धारण के क्रम में नियत धनराशि से अधिक माँग करता है तो नियम-11 का उल्लंघन होगा। सरकारी कर्मचारियों द्वारा इस नियम का कड़ाई से पालन करने हेतु कार्मिक विभाग द्वारा 11 मार्च 1986 को अनुदेश जारी किये गये हैं।
नियम 12-    समाप्त
नियम 13-    समाप्‍त
नियम 14-    सरकारी सेवक के सम्मान में सार्वजनिक  प्रदर्शन
                सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करके ही सरकारी सेवक कोई मान-पत्र या विदाई-पत्र स्वीकार करेगा।
नियम 15-    गैरसरकारी व्यापार या नौकरी
                कोई सरकारी सेवक सिवाय उस दशा के जबकि उसने सरकार की पूर्ण स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: किसी व्यापार या कारोबार में नहीं लगेगा और न ही कोई नौकरी करेगा।
                किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि कोई सरकारी सेवक, इस प्रकार की स्वीकृति प्राप्त किये बिना कोई सामाजिक या धर्मार्थ प्रकार का अवैतनिक कार्य या कोई साहित्यिक, कलात्मक या वैज्ञानिक प्रकार का आकस्मिक कार्य कर सकता है लेकिन शर्त यह है कि इस कार्य के द्वारा उसके सरकारी कर्तव्यों में कोई अड़चन नहीं पड़ती है तथा वह ऐसा कार्य हाथ में लेने से एक महीने के भीतर ही, अपने विभागाध्यक्ष को और यदि स्वयं विभागाध्यक्ष हो तो सरकार को सूचना दे दे, किन्तु यदि सरकार उसे इस प्रकार का कोई आदेश दे, तो वह ऐसा कार्य हाथ में नहीं लेगा और यदि उसने हाथ में ले लिया है तो बन्द कर देगा।
                किन्तु अग्रेतर प्रतिबन्ध यह है कि किसी सरकारी सेवक के परिवार के किसी सदस्य द्वारा गैरसरकारी व्यापार या गैरसरकारी नौकरी हाथ में लेने की दशा में ऐसे व्यापार या नौकरी की सूचना सरकारी सेवक द्वारा सरकार को दी जायेगी।
नियम 15-क (उत्तर प्रदेश सरकारी कर्मचारियों की आचरण (संशोधन) नियमावली 2002)
                कोई सरकारी सेवक चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बच्चे के किसी परिसंकटमय कार्य में न तो नियोजित करेगा, न लगाएगा या ऐसे बच्चे से बेगार या इसी प्रकार अन्य बलात श्रम नहीं लेगा।
नियम 16- कम्पनियों का निबन्धन, उन्नयन एवं प्रबन्ध
                कोई सरकारी कर्मचारी सिवाय उस दशा के, जब तक उसने सरकार की पूर्व अनुमति न प्राप्त कर ली हो, किसी ऐसे बैंक या अन्य कम्पनी के निबन्धन, परिवर्तन या प्रबन्धन में भाग न लेगा जो इण्डियन  कम्पनी  ऐक्ट 1913 के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन निबद्ध हुआ हो।
नियम 17- बीमा कारोबार

                कोई भी सरकारी सेवक अपनी पत्नी को या अपने किसी अन्य संबंधी को जो या तो उस पर पूर्णत: आश्रित हो या उसके साथ निवास करता हो, उसी जिले में, जिसमें वह तैनात हो, बीमा अभिकर्ता के रूप में कार्य करने की अनुमति नहीं देगा।
नियम 18-    अवयस्कों का संरक्षकत्व
                कोई सरकारी कर्मचारी समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त किये बिना, उस पर आश्रित किसी अवयस्क के अतिरिक्त किसी अवयस्क (Minor) के शरीर या सम्पत्ति के विधिक संरक्षक के रूप में कार्य नहीं करेगा। आश्रित का तात्पर्य पत्नी, बच्चों तथा सौतेले बच्चों और बच्चों के बच्चे, बहने, भाई तथा उनके बच्चों से है जो सरकारी सेवक पर आश्रित हों।
नियम 19-    किसी सम्बन्धी के विषय में कार्यवाही
                सरकारी सेवक के सामने कभी-कभी उनके सम्बन्धियों व रिश्तेदारों के मामले भी आते हैं। उदाहरण के लिए किसी सरकारी सेवक को ही उसका रिश्तेदार अनुदान के लिए आवेदन पत्र देता है या प्रार्थना पत्र पर अन्तिम कार्यवाही सरकारी सेवक को करनी है। ऐसी कार्यवाहियों को दो भागों में बांटा जा सकता है -
  1. ऐसी कार्यवाही जिसमें सरकारी सेवक को अपना प्रस्ताव अथवा मत प्रस्तुत करना है लेकिन अन्तिम निर्णय वरिष्ठ अधिकारी द्वारा दिया जाना है। ऐसी स्थिति में सरकारी सेवक ऐसे प्रस्ताव अथवा मत की कार्यवाही नियमानुसार करेगा लेकिन यह बात भी स्पष्ट रूप से बता देगा कि उस व्यक्ति विशेष का उससे क्या सम्बन्ध है और उस सम्बन्ध का स्वरूप क्या है।
  2. यदि सरकारी सेवक  ऐसे प्रस्ताव पर अन्तिम निर्णय करने की शक्ति रखता है तो ऐसी स्थिति में अपने सम्बन्धी के प्रस्ताव पर चाहे वह सम्बन्धी दूर का हो अथवा निकट का और उस व्यक्ति विशेष पर अनुकूल प्रभाव पड़ता हो अथवा प्रतिकूल, वह काई निर्णय नहीं लेगा बल्कि उस मामले को अपने वरिष्ठ अधिकारियों को प्रेषित करेगा। प्रस्तुत करने के कारणों, एवं उस व्यक्ति से सम्बन्ध व स्वरूप को स्पष्ट भी किया जाएगा।
                        सरकारी सेवक द्वारा अपने किसी नातेदार के सम्बन्ध में की गयी कार्यवाही भले ही निष्पक्ष क्यों न हो, आलोचना का विषय अवश्य हो सकती है। यह भी सम्भव हो सकता है कि सरकारी सेवक अपने नातेदारों और रिश्तेदारों के लिये निष्पक्षता दिखने में अधिक तत्परता से काम करें और अपने नातेदारो व रिश्तेदारों के प्रति उतना कुछ करने से भी इन्कार कर दें जितना हक हो। इस प्रकार नातेदार बिना किसी दोष के न्याय से वंचित हो सकते हैं। अत: यह नियम बनाया गया है कि प्रस्ताव भेजते समय सरकारी सेवक इस बात का उल्लेख करें कि यह मामला उनके रिश्तेदार का है और रिश्तेदारों का स्वरूप क्या है। इससे वरिष्ठ अधिकारी वस्तुनिष्ठ तरीके से मामले में अन्तिम निर्णय दे सकते हैं।
नियम 20-    सट्टा लगाना
                कोई सरकारी सेवक, किसी विनिवेश में सट्टा नहीं लगाएगा।
नियम 21-    विनिवेश
                कोई सरकारी सेवक, न तो कोई पूँजी इस प्रकार स्वयं लगायेगा और न ही अपनी पत्नी या अपने परिवार के सदस्य को लगाने देगा, जिससे उसके सरकारी कर्तव्यों के परिपालन में उलझन या प्रभाव पड़ने की संभावना हो। कोई पूँजी या प्रतिभूति उक्त प्रकार की है अथवा नहीं इसका निर्णय सरकार द्वारा किया जायेगा।
नियम 22-    उधार देना अथवा उधार लेना
                कोई सरकारी सेवक, सिवाय उस दशा के जब कि उसने समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके पास उसके प्राधिकार की स्थानीय सीमाओं के भीतर, कोई भूमि या बहुमूल्य  सम्पत्ति हो, रूपया उधार नहीं देगा और न किसी व्यक्ति को ब्याज पर रूपया उधार देगा।
                किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि कोई सरकारी कर्मचारी, किसी सरकारी नौकर को, अग्रिम रूप से वेतन दे सकता है, या इस बात के होते हुए भी कि ऐसा व्यक्ति (उसका मित्र या सम्बन्धी) उसके प्राधिकार की स्थानीय सीमाओं के भीतर कोई भूमि रखता है, वह अपने किसी जाति, मित्र य सम्बन्धी को, बिना ब्याज के, एक छोटी रकम वाला ऋण दे सकता है।
2-                कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय किसी बैंक, सहकारी समिति या अच्छी साख वाले फर्म के साथ साधारण व्यापार क्रम के अनुसार न तो किसी व्यक्ति से, अपने स्थानीय प्राधिकार की सीमाओं के भीतर रूपया उधार लेगा, और न अन्यथा, अपने को ऐसी स्थिति में रखेगा, जिससे वह उस व्यक्ति के वित्तीय आभार (Pecuniary obligaton) के अन्तर्गत हो जाय, और न वह सिवाय उस दशा के जब कि उसने समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, अपने परिवार के किसी सदस्य को, इस प्रकार का व्यवहार करने की अनुमति देगा।
                किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि कोई सरकारी कर्मचारी किसी मित्र या सम्बन्धी से बिना ब्याज वाली एक छोटी रकम का एक नितान्त अस्थायी ऋण स्वीकार कर सकता है या किसी वास्तविक व्यापारी के साथ उधार लेखा चला सकता है।
3-                जब कोई सरकारी कर्मचारी, इस प्रकार के किसी पद पर नियुक्त या स्थानान्तरण पर भेजा जाय, जिसमें उसके द्वारा उप नियम-1 या उप नियम-2 के किसी उपबन्धों का उल्लंघन निहित हो, तो वह तुरन्त ही समुचित प्राधिकारी को उक्त परिस्थितियों की रिपोर्ट भेज देगा, और उसके बाद ऐसे आदेशों के अनुसार कार्य करेगा जिन्हें समुचित प्राधिकारी दे।
4-                ऐसी सरकारी कर्मचारियों की दशा में, जो राजपत्रित अधिकारी हैं, समुचित प्राधिकारी सरकार होगी और दूसरे मामलों में, कार्यालयाध्यक्ष समुचित प्राधिकारी होगा।
नियम 23-    दिवालियापन एवं आदतन ऋणग्रस्तता
                सरकारी कर्मचारी अपने व्यक्तिगत मामलों का ऐसा प्रबन्ध करेगा जिससे वह अभ्यासी ऋणग्रस्तता से या दिवालिया होने से बच सके। ऐसे सरकारी कर्मचारी की, जिसके विरूद्ध उसके दिवालिया होने के सम्बन्ध में कोई विधिक कार्यवाही चल रही हो, चाहिए कि वह तुरन्त ही उस कार्यालय या विभागाध्यक्ष को, जिसमें वह नौकरी कर रहा हो, समस्त तथ्यों से अवगत करा दे।
नियम 24-    चल, अचल एवं बहुमूल्य सम्पत्ति
                यह नियम सम्पत्ति अर्जित करने तथा उसके विक्रय के सम्बन्ध में है। प्रत्येक सरकारी सेवक के सेवा काल में ऐसे अवसर आयेंयगे जब उनको सम्पत्ति अर्जित करने की अथवा सम्पत्ति बेचने की आवश्यता होगी। सम्पत्ति को दो भागों में बाँटा जा सकता है -
    (1)    चल सम्पत्ति- जिसमें साइकिल, टेलीफोन, रेडियो आदि आते हैं।
    (2)    अचल सम्पत्ति- जिसमें जमीन, मकान, बागान, भवन आदि आते हैं।
चल सम्पत्ति
                कोई सरकारी सेवक अपने एक माह के मूल वेतन से अधिक मूल्य की कोई चल सम्पत्ति क्रय अथवा विक्रय करता है अथवा अन्य प्रकार से व्यवहार करता है तो ऐसे व्यवहार की रिपोर्ट क्रय विक्रय अथवा व्यवहार के पश्चात समुचित प्राधिकारी को करेगा किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि कोई सरकारी सेवक, किसी ख्याति प्राप्त व्यापारी या अच्छी साख के अभिकर्ता के अतिरिक्त यदि अन्य व्यापारी के साथ ऐसा क्रय/विक्रय करता है तो इसके लिए समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति आवश्यक होगी। उदाहरण के लिए यदि कोई सरकारी सेवक जिसका मूल वेतन रू0 10,000/- है किसी ऐसी दुकान से जो नियमानुसार टी0वी0 बिक्री का कार्य करती है, से टी0वी0 क्रय करता है जिसकी कीमत रू0 8,000/- है तो वह क्रय करने के पश्चात इसकी सूचना समुचित प्राधिकारी को देगा।
                किन्तु यदि सरकारी सेवक इस प्रकार का व्यवहार किसी ऐसी व्यक्ति से करता है जो ख्याति प्राप्त व्यापारी अथवा अच्छी साख के अभिकर्ता के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्ति है तो ऐसी दशा में यह व्यवहार समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति से ही किया जा सकता है। उदाहरण के लिये यदि कोई सेवक जिसका मूल वेतन 10,000/- है किसी व्यक्ति से कोई टी0वी0 क्रय करता है, जिसकी कीमत रू0 8000 है तो वह ऐसा क्रय समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति के बाद ही करेगा।
अचल सम्पत्ति
                सरकारी सेवक सिवाय उस दशा के जबकि समुचित प्राधिकारी को इसकी पूर्व जानकारी हो अपने नाम से अथवा अपने परिवार के किसी सदस्य के नाम से न तो कोई अचल सम्पत्ति क्रय कर सकता है और न ही विक्रय कर सकता है न पट्टा करा सकता है न रेहन रख सकता है, न भेंट कर सकता है अन्यथा किसी प्रकार से हस्तान्तरित नहीं कर सकता है। उदाहरण के लिए यदि कोई सरकारी सेवक लखनऊ विकास प्राधिकरण, आवास विकास परिषद आदि संस्थाओं में मकान बनाने के लिए प्लाट अथवा भूमि या बना बनाया भवन क्रय करना चाहे तो वह ऐसा कार्य समुचित प्राधिकारी की पूर्व जानकारी के पश्चात ही कर सकेगा। यदि सरकारी सेवक उपरोक्त क्रय विक्रय आदि किसी अन्य व्यक्ति संस्था अथवा ख्याति प्राप्त व्यापारी से भिन्न व्यक्ति से करता हो तो समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति आवश्यक होगी। उदाहरण के लिए यदि लखनऊ में चिनहट के पास किसी गाँव में कोई सरकारी सेवक गाँव के किसी काश्तकार से मकान बनाने के लिए भूमि क्रय करना चाहे तो चूंकि गाँव का काश्तकार ख्याति प्राप्त व्यापारी नहीं है, अत: समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति आवश्यक होगी।
                अचल सम्पत्ति के संदर्भ में समुचित प्राधिकारी राज्य सेवा के किसी सरकारी सेवक के प्रसंग में शासन होगा जबकि अन्य सरकारी कर्मचारियों के प्रसंग में  विभागाध्यक्ष होंगे।
                जब भी कोई सरकारी सेवक प्रथम बार सेवा में नियुक्त होता है तो उन्हें नियुक्त अधिकारी को सामान्य तरीके से ऐसी सभी चल-अचल सम्पत्ति की घोषणा करनी होगी जिसका वह स्वामी है, अथवा जिसे उसने स्वयं अर्जित किया हो, या दान के रूप में प्राप्त किया हो, या जो उसके पास पट्टे या रेहन के रूप में रखी गयी हो। इसी प्रकार वह ऐसी पूँजी व हिस्सों की भी स्वयं घोषणा करेगा जो उसकी पत्नी अथवा उसके साथ रहने वाले किसी भी प्रकार से, आश्रित परिवार के सदस्य द्वारा रखी गयी हो अथवा अर्जित की गयी हो। तत्पश्चात वह यह सूचना प्रत्येक पाँच वर्षों की अवधि बीतने पर भी देगा। इन घोषणाओं में सम्पत्ति, हिस्सों और अन्य लगी हुई पूंजियों के ब्यौरे भी दिये जाने चाहिए।
                समुचित प्राधिकारी सामान्य अथवा विशेष आज्ञा द्वारा किसी भी समय किसी सरकारी सेवक को यह आदेश दे सकता है कि वह निर्दिष्ट अवधि के अन्दर ऐसी चल व अचल सम्पत्ति का, जो उसके पास अथवा उसके परिवार के किसी सदस्य के पास रही हो, या अर्जित की गयी हो का सम्पूर्ण विवरण पत्र प्रस्तुत करें तथा साथ ही उन साधनों के ब्यौरे भी उपलब्ध करें जिनके द्वारा सम्पत्ति अर्जित की गयी थी।
                शासन की मंशा यह नही कि सरकारी सेवक सम्पत्ति अर्जित न करे, केवल यह उद्देश्य है कि अर्जित की गयी सम्पत्ति उसके द्वारा विधिसम्मत अर्जित आय की सीमा के अन्दर ही हो।
नियम 25 - सरकारी सेवकों के कार्यों तथा चरित्र का प्रतिसमर्थन
                कोई भी सरकारी सेवक, सिवाय उस दशा के जबकि उसने सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, किसी ऐसे सरकारी कार्य का, जो प्रतिकूल आलोचना या मानहानिकारी आक्षेप का विषय बन गया हो, प्रतिसमर्थन करने के लिए, किसी समाचार पत्र की शरण न लेगा।
नियम 26 - समाप्त
नियम 27 - सेवा सम्बन्धी मामलों में गैर सरकारी एवं बाहय प्रभाव
                कोई भी सरकारी सेवक अपनी सेवा से सम्बन्धित अपने हितों के संबंध में किसी मामले में कोई राजनीतिक अथवा अन्य वाहय साधनों से न तो स्वयं अथवा अपने कुटुम्ब के किसी सदस्य द्वारा कोई प्रभाव डालेगा या प्रभाव डलवाने का प्रयास करेगा। कभी-कभी सरकारी सेवक अपने, स्थानान्तरण, प्रोन्नति आदि के सम्बन्ध में माननीय विधायक सांसद अथवा अन्य व्यक्तियों द्वारा दबाव डलवाने का प्रयास करते हैं। आचरण नियमावली में इस बात की पूरी तरह मनाही है। इसी नियम से सम्बद्ध अधोलिखित नियम 27-क है।

नियम  27-क    कोई सरकारी सेवक सिवाय उचित माध्यम अथवा ऐसे निर्देशों के अनुसार जो समय-समय पर जारी किये गये है व्यक्तिगत रूप से अपने या परिवार के किसी सदस्य के माध्यम से सरकार अथवा किसी अन्य प्राधिकारी को कोई अभ्यावेदन नहीं करेगा। कभी-कभी सरकारी सेवक बाहरी प्रभाव का प्रयोग स्वयं नहीं करते अथवा अभ्यावेदन स्वयं नही देते हैं लेकिन उनके परिवार के सदस्य इस प्रकार का प्रभाव डलवाते हैं या अभ्यावेदन देते हैं। इस नियम में स्पष्ट किया गया है कि जब तक बात विपरीत प्रमाणित नहीं हो जाए यह माना जायेगा कि ऐसा कार्य सरकारी सेवक की प्रेरणा या मौन स्वीकृति से किया गया है।
नियम 28 - अनाधिकृत वित्तीय व्यवस्थाएँ
                कोई सरकारी कर्मचारी किसी अन्य सरकारी कर्मचारी के साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कोई ऐसी वित्तीय व्यवस्था नहीं करेगा जिसमें दोनों में से किसी एक को या दोनों को ही अनाधिकृत रूप से या तत्पसमय प्रवृत्त किसी नियम के विशिष्ट या ध्वनित उपबन्धों के विरूद्ध किसी प्रकार का लाभ हो।
नियम  29 - बहु-विवाह
  1. कोई सरकारी कर्मचारी, जिसकी एक पत्नी जीवित है, इस बात के होते हुए भी कि तत्समय  उस पर लागू किसी वैयक्तिक विधि के अधीन उसे इस प्रकार की बाद की दूसरी शादी की अनुमति प्राप्त है, बिना सरकार की पूर्व अनुमति प्राप्त किये, दूसरा विवाह नहीं करेगा।
  2. कोई महिला सरकारी कर्मचारी, बिना सरकार की पूर्व अनुमति के, ऐसे व्यक्ति से जिसकी एक पत्नी जीवित हो, विवाह नहीं करेगी।
नियम 30 - सुख सुविधाओं का समुचित उपयोग
            इस नियम में इस बात का उल्लेख किया गया है कि सरकारी सेवक ऐसी सुख सुविधा का दुरूपयोग नहीं करेगा और न ही उनका असावधानी के साथ प्रयोग करेगा जिनकी व्यवस्था सरकार ने उसके सरकारी कर्तव्यों के पालन में उसे सुविधा पहुँचाने के प्रयोजन से की हो।
नियम 31 - क्रय का मूल्य देना
            कोई सरकारी सेवक, उस समय तक जब तक किस्तों में मूल्य देना प्रथानुसार या विशेष रूप से उपबन्धित न हो या जब तक किसी सद्भावी व्यापारी के पास उसका उधार-लेखा न खुला हो, उन वस्तुओं का, जिसे उसने खरीदा, चाहे ये खरीददारियाँ उसने दौरे पर या अन्यथा की हों, तुरंत पूर्ण मूल्य देने से मना नहीं करेगा।
नियम 32 - बिना मूल्य दिए सेवाओं का उपयोग करना
            इस नियम में इस बात का उल्लेख किया गया है कि बिना मूल्य दिये कोई सरकारी सेवक किसी सेवा अथवा आमोद का स्वयं प्रयोग नहीं करेगा जिसके लिये कोई शुल्क अथवा मूल्य दिया जाता है। उदाहरण के लिए सरकारी सेवक  बिना टिकट क्रय किए सिनेमा हाल में फिल्म नहीं देख सकते हैं। लेकिन ऐसे उदाहरण हो सकते हैं जहाँ पर सरकारी सेवक नि:शुल्क फिल्म ही नहीं देखते वरन् आमोद-कर भी सरकार को नही देते हैं। इस प्रकार वह दुराचरण करते हैं।
नियम 33 - दूसरों के गैर सरकारी वाहन का उपभोग
            कोई सरकारी सेवक, सिवाय बहुत ही विशेष परिस्थितियों के होने की दशा में, किसी ऐसी सवारी गाड़ी को प्रयोग में नहीं लाएगा जो किसी असरकारी व्यक्ति की हो या किसी ऐसे सरकारी सेवक की हो जो उसके अधीन हो।
नियम 34 - अधीनस्थों के माध्यम से क्रय
            कोई सरकारी कर्मचारी, किसी ऐसे सरकारी कर्मचारी से, जो उसके अधीन हो, अपनी ओर से या अपनी पत्नी या अपने परिवार के अन्य सदस्य की ओर से, चाहे अग्रिम भुगतान करने पर या अन्यथा, उसी शहर में या किसी दूसरे शहर में, खरीददारियां करने के लिए न तो स्वयं कहेगा और न अपनी पत्नी को या अपने परिवार के किसी अन्य सदस्य को जो उसके साथ रह रहा हो, कहने की अनुमति देगा। अधिसूचना संख्या-9/7/78-कार्मिक-1, दिनांक 20 नवम्बर, 1980 द्वारा चपरासियों के माध्यम से भी क्रय विक्रय कराने की सुविधा पर प्रतिबन्ध लगाया गया है।
नियम 35 - निर्वचन
                यदि इन नियमों के निर्वाचन से संबंधित कोई प्रश्न उठ खड़ा हो तो उसे सरकार के पास भेज देना चाहिए और उस पर सरकार का जो भी निर्णय होगा, वह अंतिम होगा।
नियम 36 - निरसन एवं अपवाद
                इन नियमों के प्रवृत्त होने के ठीक पूर्व कोई भी नियम, जो इन नियमों के प्रतिस्थानी थे एवं जो उत्तर प्रदेश के नियंत्रण के अधीन सरकारी सेवकों पर लागू होते थे, एतदद्वारा निरस्त किए जाते हैं।

श्रोत - http://fcs.up.nic.in/Go-lekha-shakha/Lesson%20No.%2020%20Checked.htm

Wednesday, 24 May 2017

राजकीय सेवकों के लिए अवकाश नियम

          सामान्यत सभी राजकीय कर्मचारी समय समय पर अपनी वास्तविक जरूरतों के मुताविक विभिन्न प्रकार के अवकाशों का उपभोग करते हैं किन्तु कभी कभी जानकारी के अभाव में अवकाशों के उपभोग को लेकर अनेक परेशानियां पैदा हो जाना स्वाभाविक है. मेरे कुछ सहकर्मियों ने अवकाश नियमों की जानकारी चाहने की मुझसे इच्छा व्यक्त की है, उनकी सुविधा के लिए यहाँ अवकाश नियम पोस्ट कर रहा हूँ. आशा हैं की मेरे सहकर्मियों सहित समस्त पाठक इस पोस्ट से जानकारी लेकर लाभान्वित हो सकेंगे.          (सुशील डोभाल)
 अवकाश नियम
                अवकाश नियमों को सरलता प्रदान करने के लिये, अवकाशों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। पहली श्रेणी में वे अवकाश रखे जा सकते हैं जो मूलत: वित्तीय हस्तपुस्तिका खण्ड-दो (भाग 2 से 4) में वर्णित मूल एवं सहायक नियमों से संचालित होते हैं, तथा द्वितीय श्रेणी में वे अवकाश जो भिन्न प्रकार के हैं, यथा आकस्मिक अवकाश।
(I)    वित्तीय हस्त पुस्तिका खण्ड-दो (भाग 2 से 4) के नियमों में उल्लिखित विभिन्न अवकाश   
  1. अर्जित अवकाश (Earned Leave)
  2. निजी कार्य पर अवकाश (Leave on Private Affairs)
  3. चिकित्सा प्रमाण-पत्र पर अवकाश (Leave on Medical Certificate)
  4. मातृत्व अवकाश (Maternity Leave)
  5. असाधारण अवकाश (Extra Ordinary Leave)
  6. चिकित्सालय अवकाश (Hospital Leave)
  7. अध्ययन अवकाश (Study Leave)
  8. विशेष विकलांगता अवकाश (Special Disability Leave)
  9. लघुकृत अवकाश (Commuted Leave)
अवकाश सम्बन्धी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
            अवकाश का तात्पर्य यहाँ उपरोक्त प्रस्तरों में वर्णित सभी अवकाशों से है जब तक कि स्पष्ट रूप से किसी अवकाश विशेष का उद्धरण न दिया गया हो।
(क)    अवकाश स्वीकृति हेतु सक्षम प्राधिकारी
            विशेष विकलांगता अवकाश के अतिरिक्त मूल नियमों के अन्तर्गत देय अन्य अवकाश शासन के अधीनस्थ उन प्राधिकारियों द्वारा प्रदान किया जा सकता है जिन्हें राज्यपाल नियम या आदेश द्वारा निर्दिष्ट कर दें। विशेष विकलांगता अवकाश राज्यपाल द्वारा स्वीकृत किया जा सकता है।
मूल नियम 66
(ख)    अराजपत्रित सरकारी सेवकों को विशेष विकलांगता अवकाश के अतिरिक्त मूल नियमों के अन्तर्गत अनुमन्य कोई भी अन्य अवकाश उस प्राधिकारी द्वारा जिसका कर्तव्य उस पद को यदि वह रिक्त होता, भरने का होता  या वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-दो (भाग 2 से 4) के भाग 4 (विवरण पत्र-4 के क्रम संख्या 5, 8 तथा 9) में उल्लिखित किसी अन्य निम्नतर सक्षम प्राधिकारी द्वारा प्रतिनिहित अधिकार सीमा के अधीन रहते हुए प्रदान किया जा सकता है।
सहायक नियम 35
(सपठित वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-एक का विवरण पत्र-14)
(ग)    राजपत्रित अधिकारियों को अवकाश देने के लिए साधारणतया शासन की स्वीकृति की आवश्यकता है, किन्तु वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-दो के भाग-4 (विवरण पत्र-4 के क्रम संख्या 6, 7, 8 व 9) में उल्लिखित किसी अन्य निम्नतर सक्षम प्राधिकारी द्वारा प्रतिनिहित अधिकार सीमा के अधीन रहते हुए प्रदान किया जा सकता है।
सहायक नियम 36
राजपत्रित अधिकारियों की सेवानिवृत्ति पर लेखे में जमा अर्जित अवकाश का नकदीकरण:-
                शासनादेश संख्या-सा-4-438/दस-2000-203-86 दिनांक 3 जुलाई, 2000 के अन्तर्गत सरकारी सेवक के सेवानिवृत्ति पर अवशेष 300 दिनों तक के अर्जित अवकाश का नकदीकरण विभागाध्यक्षों द्वारा स्वीकृत किया जा सकता है।
                विभागाध्यक्ष अपने अधीनस्थ राजपत्रित अधिकारियों को प्राधिकृत चिकित्सक द्वारा प्रदत्त प्रमाण-पत्र के आधार पर तीन माह की अवधि तक का चिकित्सा प्रमाण-पत्र पर अवकाश प्रदान कर सकते हैं।
(शासकीय ज्ञाप संख्या-सा-4-1752/दस-200(2)-77 दिनांक 20-6-1978)
प्रसूति अवकाश- संबंधित विभागाध्यक्ष द्वारा अथवा किसी ऐसे निम्नतर अधिकारी द्वारा जिसे इसके लिए अधिकार प्रतिनिहित किया गया हो, प्रदान किया जा सकता है।
सहायक नियम 153, 154
वाह्य सेवा
            अवकाश केवल ड्यूटी देकर ही उपार्जित किया जाता है। इस नियम के लिए वाह्य सेवा में व्यतीत की गई अवधि को ड्यूटी माना जाता है, यदि ऐसी अवधि के लिए अवकाश वेतन के लिए अंशदान का भुगतान कर दिया गया है।
मूल नियम 59
अवकाश का दावा अधिकार के रूप में नहीं
                किसी अवकाश का दावा या माँग अधिकार स्वरूप नहीं किया जा सकता है। अवकाश लेने का दावा ऐसे नहीं किया जा सकता है जैसे कि वह एक अधिकार हो। जब इन सेवाओं की आवश्यकताएँ ऐसी अपेक्षा करती हों, तो किसी भी प्रकार के अवकाश को निरस्त करने या अस्वीकृत करने का अधिकार अवकाश प्रदान करने हेतु सक्षम प्राधिकारी के पास सुरक्षित है। इस सम्बन्ध में अवकाश स्वीकृत करने वाला अधिकारी किसी अवकाश को जनहित में अस्वीकृत करने के लिए पूर्णतया सक्षम होता है।
मूल नियम 67
अवकाश का प्रारम्भ एवं समाप्ति
                अवकाश साधारणतया कार्यभार छोड़ने से प्रारम्भ होता है तथा कार्यभार ग्रहण करने की तिथि के पूर्व दिवस को समाप्त होता है। अवकाश के प्रारम्भ होने के ठीक पहले व अवकाश समाप्ति के तुरन्त पश्चात पड़ने वाले रविवार व अन्य मान्यता प्राप्त अवकाशों को अवकाश के साथ उपभोग करने की स्वीकृति, अवकाश स्वीकृत करने वाले प्राधिकारी द्वारा दी जा सकती है। अवकाश का आरम्भ सामान्यत: उस दिन से माना जाता है जिस दिन संबंधित कर्मचारी/अधिकारी द्वारा अपने पद /कार्यालय  का प्रभार हस्तान्तरित किया जाता है। इसी प्रकार अवकाश से लौटने पर प्रभार ग्रहण करने के पूर्व के दिवस को अवकाश समाप्त माना जाता है।
मूल नियम 68
अवकाश अवधि में अन्य व्यवसाय
                बिना प्राधिकृत अधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त किये कोई सरकारी सेवक अवकाश काल में कोई लाभप्रद व्यवसाय या नौकरी नहीं कर सकता है। नियमत: अवकाश काल में कोई भी राजकीय कर्मचारी अन्यत्र कोई सेवा धनोपार्जन के उद्देश्य से नहीं कर सकता जब तक कि इस संबंध में उसके द्वारा सक्षम अधिकारी से पूर्व स्वीकृति प्राप्त न कर ली जाये।
मूल नियम 69
स्वास्थ्य प्रमाण पत्र
                चिकित्सा प्रमाण पत्र पर अवकाश का उपभोग करने के उपरान्त किसी भी कर्मचारी को सेवा में योगदान करने की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती जब तक कि उसके द्वारा निर्धारित  प्रपत्र पर अपना स्वास्थ्य प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया जाता। यदि सक्षम अधिकारी चाहे तो अस्वस्थता के आधार पर लिये गये किसी अन्य श्रेणी के अवकाश के मामले में भी उपरोक्त स्वास्थ्य प्रमाण पत्र माँग सकता है।
मूल नियम 71
अवकाश की समाप्ति के उपरान्त अनुपस्थिति
                यदि कोई राजकीय कर्मचारी अवकाश अवधि की समाप्ति के उपरान्त भी अनुपस्थित रहता है तो उसे ऐसी अनुपस्थिति की अवधि के लिए कोई अवकाश वेतन देय नहीं होगा और उक्त अवधि को उसके अवकाश लेखा खाते से यह मानते हुए घटा दिया जायेगा जैसे कि उक्त अवधि अर्ध औसत वेतन पर देय अवकाश थी, जब तक अवकाश अवधि शासन द्वारा बढ़ा न दी गयी हो। अवकाशोपरान्त जान बूझकर सेवा से अनुपस्थिति मूल नियम 15 के प्रयोजन हेतु दुर्व्यवहार माना जायेगा।
मूल नियम 73
एक प्रकार के अवकाश के साथ/क्रम में दूसरे प्रकार के अवकाश की अनुमन्यता:-
                किसी एक प्रकार के अवकाश को दूसरे प्रकार के अवकाश के साथ अथवा क्रम में स्वीकृत  किया जा सकता है।
(मूल नियम 81 ख(6), 83(4), सहायक नियम-157-क(5) तथा 154)
अवकाश वेतन
                अर्जित अवकाश अथवा चिकित्सा अवकाश प्रमाण पत्र पर अवकाश पर जाने के ठीक पूर्व आहरित वेतन की दरों पर अवकाश वेतन अनुमन्य होता है। अवकाश अवधि में देय प्रतिकर भत्तों के भुगतान के संबंध में मूल नियम-93 तथा सहायक नियम 147, 149, 150 तथा 152 में व्यवस्था दी गई है। जो विशेष वेतन तथा प्रतिकर भत्ते किसी कार्य विशेष को करने के कारण देय होते हैं उन्हें अवकाश अवधि में देने का कोई औचित्य नहीं है परन्तु जो विशेष वेतन तथा भत्ते वैयक्तिक योग्यता के आधार पर देय होते हैं (स्नातकोत्तर भत्ता, परिवार कल्याण भत्ता, वैयक्तिक योग्यता भत्ता) अवकाश वेतन के साथ दिये जाने चाहिए। विशेष वेतन तथा अन्य भतों का भुगतान अवकाश अवधि के अधिकतम 120 दिन की सीमा तक अनुमन्य होगा।
शासनादेश संख्या-सा-4-296/दस-88-216-19 दिनांक 8-3-88
              अवकाश प्रदान करने वाले प्राधिकारी को अवकाश के प्रकार में परिवर्तन करने का अधिकार नहीं है।
मूल नियम 87-क तथा सहायक नियम 157 क से सम्बन्धित राज्यपाल के आदेश
सरकारी सेवक जिन्हें अवकाश प्रदान नहीं किया जा सकता:-
  1. सरकारी सेवक को निलम्बन की अवधि में अवकाश प्रदान नहीं किया जा सकता।
मूल नियम 55
  1. सरकारी सेवक जिसे दुराचरण अथवा सामान्य अक्षमता के कारण सेवा से निकाला या हटाया जाना अपेक्षित हो को अवकाश स्वीकृत नहीं किया जाना चाहिए, यदि उस अवकाश के प्रभाव स्वरूप निकाले या हटाये जाने की स्थिति स्थगित हो जाती है।
सहायक नियम 101
अवकाश प्रार्थना पत्रों पर विचार
                अवकाश प्रार्थना पत्रों पर निर्णय करते समय सक्षम अधिकारी निम्न बातों का ध्यान रखेंगे-
क-    कर्मचारी जिसके बिना उस समय सरलता से कार्य चलाया जा सकता है।
ख-    अन्य कर्मचारियों के अवकाश की अवधि।
ग-    पिछली बाद लिये गये अवकाश से वापस आने के पश्चात सेवा की अवधि।
घ-    किसी आवेदक को पूर्व में स्वीकृत अवकाश से अनिवार्य रूप से वापस तो नहीं बुलाया गया।
ड़-    आवेदक को पूर्व में जनहित में अवकाश अस्वीकृत तो नहीं किया गया।
सहायक नियम 99
1-    अर्जित अवकाश
                अर्जित अवकाश स्थायी तथा अस्थायी दोनो प्रकार के सरकारी सेवकों द्वारा समान रूप से अर्जित किया जाता है, तथा समान शर्तों के अधीन उन्हें स्वीकृत किया जाता है।
मूल नियम 81-ख(1) सहायक नियम 157-क(1)
अवकाश अवधि व अर्जित अवकाश की प्रक्रिया
                सरकारी सेवक के अर्जित अवकाश लेखों में पहली जनवरी को 16 दिन तथा पहली जुलाई को 15 दिन अग्रिम रूप में जमा किया जायेगा।
                अवकाश का हिसाब लगाते समय दिन के किसी अंश को निकटतम दिन पर पूर्णांकित किया जाता है, ताकि अवकाश का हिसाब पूरे दिन के आधार पर रहे।
                किसी एक समय जमा अवकाश का अवशेष शासनादेश संख्या : सा-4-392/दस-94-203-86, दिनांक : 1 जुलाई, 1999 के अनुसार सरकारी सेवकों के अवकाश खाते में अर्जित अवकाश जमा करने की अधिकतम सीमा 300 दिन कर दी गयी है।
               नियुक्ति होने पर प्रथम छ:माही में सेवा के प्रत्येक पूर्ण कैलेण्डर मास के लिए 2-1/2 (ढाई) दिन प्रतिमास की दर से अवकाश पूर्ण दिन के आधार पर जमा किया जाता है। इसी प्रकार मृत्यु सहित किसी भी कारण से सेवा से मुक्त होने वाली छ:माही में सेवा में रहने के दिनांक  तक की गई सेवा के प्रत्येक पूर्ण कैलेण्डर मास के लिए 2-1/2 दिन प्रतिमास की दर से पूरे दिन के आधार पर अवकाश देय होता है।
                जब किसी छ:माही में असाधारण अवकाश का उपभोग किया जाता है तो संबंधित सरकारी सेवक के अवकाश लेखे में अगली छ:माही के लिए जमा किये जाने वाला अवकाश असाधारण अवकाश की अवधि के 1/10 की दर से 15 दिन की अधिकतम सीमा के अधीन रहते हुए (पूरे दिन के आधार पर) अर्जित अवकाश कम कर दिया जाता है।
            शासकीय ज्ञाप संख्या-सा-4-1071 एवं 1072/दस-1992-201/76 दिनांक 21 दिसम्बर 1992 मूल नियम 81 ख(1) एवं सहायक नियम 157-क(1)
अवकाश लेखा
                अर्जित अवकाश के संबंध में सरकारी सेवकों के अवकाश लेखे प्रपत्र-11घ में रखे जायेंगे।
मूल नियम-81 ख (1) (8)
अर्जित अवकाश की एक बार में स्वीकृत करने की अधिकतम सीमा
 यदि सम्पूर्ण अवकाश भारत में व्यतीत किया जा रहा हो                -120 दिन
यदि सम्पूर्ण अवकाश भारत से बाहर व्यतीत किय जा रहा हो             -180 दिन
               मूल नियम-81 ख(दस) सहायक नियम 157(क)(1)(ग्यारह)
अवकाश वेतन
                अवकाश काल में सरकारी सेवक को अवकाश पर प्रस्थान के ठीक पहले प्राप्त होने वाले वेतन के बराबर अवकाश वेतन ग्राह्य होता है।
प्रत्यावर्तित होने पर अवकाश वेतन
                परन्तु यदि सरकारी सेवक उच्चतर वेतनमान वाले किसी पद से निम्न वेतनमान वाले किसी पद पर प्रत्यावर्तित किया जाय और वह प्रत्यावर्तन के दिनांक से छुट्टी पर चला जाय तो वह ऐसे वेतन के बराबर अवकाश वेतन का हकदार होगा जो नियमों के अधीन उसे, यदि वह छुट्टी पर न गया होता, अनुमन्य होता।
मूल नियम-87-क(1) तथा सहायक नियम 157-क(6)(क)
शासनादेश संख्या-सा-4-1395/दस-88-200-76 दिनांक 13-10-1988 द्वारा प्रतिस्थापित तथा दिनांक 1-4-1978 से प्रभावी
अवकाश वेतन अग्रिम का भुगतान
                शासकीय संख्या-ए-1-1668/दस-3-1(4)-65 दिनांक 13 अक्टूबर 1978 के अनुसार सरकारी कर्मचारियों का उनके अवकाश पर जाने के समय अवकाश वेतन अग्रिम धनराशि भुगतान करने की अनुमति निम्न शर्तों के अधीन दी जा सकती है:-
  1. यह अग्रिम धनराशि कम से कम 30 दिन से अधिक की अवधि के केवल अर्जित अवकाश या निजी कार्य पर अवकाश के मामले में देय होगी।
  2. यह अग्रिम धनराशि ब्याज रहित होगी।
  3. अग्रिम की धनराशि अन्तिम बार लिये गये मासिक वेतन, जिसमें मँहगाई भत्ता, अतिरिक्त मँहगाई भत्ता (अन्य भत्ते छोड़कर) भी सम्मिलित होंगे।
  4. उपरोक्त प्रस्तर एक में उल्लिखित प्रकार की अवधि यदि 30 दिन से अधिक और 120 दिन से अधिक न हो तो उस दशा में भी पूरा अवकाश अवधि का, लेकिन एक समय में केवल एक माह का अवकाश वेतन अग्रिम उपरोक्त प्रस्तर 3 में उल्लिखित दर से स्वीकृत किया जा सकता है।
  5. अवकाश वेतन अग्रिम से सामान्य कटौतियाँ कर ली जानी चाहिये।
  6. यह अग्रिम धनराशि स्थायी तथा अस्थायी सरकारी कर्मचारी को देय होगी। किन्तु अस्थायी कर्मचारी के मामले में यह धनराशि वित्तीय हस्त पुस्तिका खण्ड-पाँच भाग-1 के पैरा 242 में दी गई अतिरिक्त शर्तों के अधीन मिलेगी।
  7. राजपत्रित अधिकारियों को अग्रिम धनराशि लेने के लिए प्राधिकार पत्र की आवश्यकता नहीं होगी। भुगतान स्वीकृति के आधार पर किया जायेगा।
  8. वित्तीय हस्त पुस्तिका खण्ड-पाँच भाग-1 के पैरा 249 (ए) के अधीन सरकारी कर्मचारियों के लिए अग्रिम धनराशियां स्वीकृत करने के लिए सक्षम अधिकारी अवकाश वेतन का अग्रिम भी स्वीकृत कर सकता है। यह प्राधिकारी अपने लिए भी ऐसी अग्रिम धनराशि स्वीकृत कर सकता है।
  9. इस पूरी अग्रिम धनराशि का समायोजन सरकारी कर्मचारी के अवकाश वेतन के प्रथम बिल से किया जायेगा। यदि पूरी अग्रिम धनराशि का समायोजन इस प्रकार नहीं हो सकता है तो शेष धनराशि की वसूली वेतन या अवकाश वेतन से अगले भुगतान के समय की जायेगी।
अवकाश/अवकाश के नकदीकरण के लिये आवेदन पत्र
टिप्पणी :-    (1) मद 1 से 10 तक की प्रविष्टियाँ सभी आवेदकों द्वारा, चाहे वे राजपत्रित अधिकारी हों अथवा अराजपत्रित कर्मचारी हों, भरी जायेंगी।
(2) मद 10 केवल अवकाश नकदीकरण के मामले पर लागू होगी।
1.
आवेदक का नाम .......................................................
2. लागू अवकाश नियम .................................................
3. पदनाम ......................................................................
4. विभाग/कार्यालय ........................................................
5. वेतन .........................................................................
6. अवकाश किस दिनांक से किस दिनांक तक दिनांक............से ............तक
 अपेक्षित है तथा उसकी प्रकृति प्रकृति ..................................
7. अवकाश मांगे जाने का कारण ...............................................
8. पिछली बार अवकाश किस दिनांक से किस दिनांक ............से ...........तक
दिनांक तक लिया गया था तथा उसकी प्रकृति प्रकृति .................................
9. अवकाश की अवधि में पता ..................................................
10. (क) (1) क्या एक मास/30 दिन/15 दिन के औसत वेतन पर अवकाश/अर्जित अवकाश का नकदीकरण अपेक्षित है? ....................................
(2) यदि हां, तो किस दिनांक को ................................................
(ख)    क्या चालू कैलेन्डर वर्ष में इसके पूर्व अवकाश के नकदीकरण की सुविधा प्राप्त हुई है? ...............
दिनांक:
आवेदक के हस्ताक्षर
1- अग्रसारण अधिकारी की अभ्युक्ति/संस्तुति .......................................
दिनांक:
...............................
हस्ताक्षर
...............................
पदनाम
11.
फाइनेन्शियल हैण्ड बुक खण्ड-2, (भाग 2 से 4) के सहायक नियम 81 के अनुसार प्राधिकारी की रिपोर्ट :-
(क) प्रमाणित किया जाता है कि फाइनेन्शियल हैण्ड बुक खण्ड-2, (भाग 2 से 4) के मूल नियम/सहायक नियम ................ के अधीन दिनांक .................... से .................... तक आवेदित अर्जित अवकाश/औसत वेतन पर अवकाश देय है।
(ख) प्रमाणित किया जाता है कि मद 10 पर अपेक्षित अवकाश के नकदीकरण का सुविधा देय तथा अनुमन्य है।
दिनांक: ................................
हस्ताक्षर
................................
पदनाम
12.
अवकाश तथा अवकाश का नकदीकरण स्वीकृत करने के लिये सक्षम प्राधिकारी के आदेश।
दिनांक:
                                                                                                                              ...............................
हस्ताक्षर
...............................
पदनाम
2-    निजी कार्य पर अवकाश
                निजी कार्य पर अवकाश अर्जित अवकाश की ही भांति तथा उसके लिये निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार प्रत्येक कैलेण्डर वर्ष के लिए 31 दिन 2 छ:माही किश्तों में जमा किया जाता है। नियुक्ति की प्रथम छ:माही तथा सेवा से पृथक होने वाली छ:माही के लिए, जमा होने वाले अवकाश का आगणन तथा असाधारण अवकाश के उपयोग करने पर अवकाश की कटौती विषयक प्रक्रिया भी वही है, जो अर्जित अवकाश के विषय में है।
अधिकतम अवकाश अवधि तथा देय अवकाश
स्थायी सरकारी सेवक
  1. यह अवकाश 365 दिन तक की अधिकतम सीमा के अधीन जमा किया जाता है
  2. सम्पूर्ण सेवाकाल में कुल मिलाकर 365 दिन तक का ही अवकाश स्वीकृत किया जा सकता है।
  3. किसी एक समय में स्वीकृत की जा सकने योग्य अधिकतम सीमा निम्नानुसार-
पूरा अवकाश भारत में व्यतीत किये जाने पर       -90 दिन
पूरा अवकाश भारत से बाहर व्यतीत किये जाने पर -180 दिन
मूल नियम 81-ख (3)
शासकीय ज्ञाप संख्या-सा-4-1071/दस-1992-2001/76 दिनांक 21 दिसम्बर, 1992
अस्थायी सरकारी सेवक
                सम्पूर्ण अस्थायी सेवाकाल में कुल मिलाकर 120 दिन तक का अवकाश प्रदान किया जा सकता है।
                अस्थायी सेवकों को निजी कार्य पर अवकाश तब तक स्वीकार नहीं होता जब तक कि उनके द्वारा दो वर्ष की निरन्तर सेवा पूरी न कर ली गयी हो।
                अस्थायी सरकारी सेवकों के अवकाश खातों में निजी कार्य पर अवकाश किसी अवसर पर 60 दिन से अधिक जमा नहीं होगा।
                 किसी सरकारी सेवक को एक बार में निजी कार्य पर अवकाश स्वीकृत किये जाने की अधिकतम अवधि साठ दिन होगी।
                  अवकाश स्वीकृति आदेश में अतिशेष अवकाश इंगित ‍किया जायेगा।
सहायक नियम-157-क (3)
शासकीय ज्ञाप संख्या-सा-4-1072/दस-1992-2001/76 दिनांक 21 दिसम्बर, 1992
अवकाश लेखा
            निजी कार्य पर अवकाश के संबंध में सरकारी सेवकों के अवकाश लेखे प्रपत्र 11-ङ, में रखे जायेंगे।
सहायक नियम-157-क(3)(दस)
अवकाश वेतन
            निजी कार्य पर अवकाश काल में यह अवकाश वेतन मिलता है जो अर्जित अवकाश के लिए अनुमन्य होने वाले अवकाश वेतन की धनराशि के आधे के बराबर हो।
मूल नियम 87-क(2) तथा सहायक नियम 157-क(6) (ख)
3-    चिकित्सा प्रमाण-पत्र पर अवकाश
स्थायी सेवक
                सम्पूर्ण सेवाकाल में 12 माह तक का चिकित्सा प्रमाण-पत्र पर अवकाश नियमों द्वारा निर्दिष्ट चिकित्सकों द्वारा प्रदान  किये गये चिकित्सा प्रमाण पत्र पर स्वीकार किया जा सकता है।
                उपरोक्त 12 माह का अवकाश समाप्त होने के उपरान्त आपवादिक मामलों में चिकित्सा परिषद की संस्तुति पर सम्पूर्ण सेवाकाल में कुल मिलाकर 6 माह का चिकित्सा प्रमाण पत्र पर अवकाश और स्वीकार किया जा सकता है।
मूल नियम 81-ख(2)
अस्थायी सेवक
          ऐसे अस्थायी सेवकों को जो तीन वर्ष अथवा उससे अधिक समय से निरन्तर कार्यरत रहे हों तथा नियमित नियुक्ति और अच्छे आचरण आदि शर्तों को पूरा करते हों स्थायी सरकारी सेवकों के ही समान  12 महीने तक चिकित्सा प्रमाण पत्र पर अवकाश की सुविधा है, परन्तु 12 माह के उपरान्त स्थायी सेवकों को प्रदान किया जा सकने वाला 6 माह का अतिरिक्त अवकाश इन्हें अनुमन्य नहीं हैं।
            शेष सभी अस्थायी सेवकों को चिकित्सा प्रमाण पत्र के आधार पर सम्पूर्ण अस्थायी सेवाकाल में चार माह तक अवकाश प्रदान किया जा सकता है।
            प्राधिकृत चिकित्सा प्राधिकारी की संस्तुति पर सक्षम अधिकारी द्वारा साठ दिन तक की छुट्टी स्वीकृत की जा सकती है। इस अवधि से अधिक छुट्टी तब तक स्वीकृत नहीं की जा सकती, जब तक सक्षम अधिकारी को यह समाधान न हो जाये कि आवेदित छुट्टी की समाप्ति पर सरकारी कर्मचारी के कार्य पर वापस आने योग्य हो जाने की समुचित सम्भावना हो। यदि सरकारी कर्मचारी की बीमारी के उपचार के मध्य मृत्यु हो जाती है तो उसे सक्षम अधिकारी चिकित्सा अवकाश स्वीकृत करेगा यदि चिकित्सा अवकाश अन्यथा देय है।
मूल नियम-81-ख(2)(2), सहायक नियम-87
शासनादेश सं0-सा-4-525/दस-96-201/76 टी0सी0, दिनांक 19-8-1996
अवकाश वेतन
            1-    स्थायी सेवकों तथा तीन वर्षों से निरन्तर कार्यरत अस्थायी सेवकों को 12 माह तक की अवधि तथा शेष अस्थायी सेवकों को चार माह तक की अवकाश अवधि के लिये वह आवश्यक वेतन अनुमन्य होगा, जो उसे अर्जित अवकाश को उपभोग करने की दशा में अवकाश वेतन के रूप में देय होता
            2-    स्थायी सेवकों को 12 माह का अवकाश समाप्त होने के उपरान्त देय अवकाश के लिये अवकाश की दशा में अनुमन्य अवकाश वेतन की आधी धनराशि अवकाश वेतन के रूप में अनुमन्य होती है।
मूल नियम 87-क (2)
शासकीय ज्ञाप संख्या-सा-4-1071/दस-1992-2001/76 दिनांक 21 दिसम्बर, 1992
चिकित्सा प्रमाण पत्र प्रदान करने हेतु अधिकृत चिकित्सकों का निर्धारण
अधिकारी/कर्मचारी 
प्राधिकृत चिकित्सक
समूह 'क' के अधिकारी
-
मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य/रोग से संबंधित विभाग के प्रोफेसर
- मुख्य चिकित्सा अधिकारी
- राजकीय अस्पताल के प्रमुख/मुख्य/वरिष्ठ अधीक्षक
- राजकीय अस्पताल के मुख्य/वरिष्ठ कन्सल्टेंट/कन्सल्टेंट
समूह 'ख' के अधिकारी
-
मेडिकल कालेज के रोग से संबंधित विभाग के प्रोफेसर/रीडर
 - राजकीय अस्पताल के प्रमुख/मुख्य/वरिष्ठ अधीक्षक
- राजकीय अस्पताल के मुख्य/वरिष्ठ कन्सल्टेंट/ कन्सल्टेंट
समूह 'ग' व 'घ' के कर्मचारी - मेडिकल कालेज के रोग से संबंधित विभाग के रीडर/लेक्चरर
-
राजकीय चिकित्सालयों/औषधालयों/सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों/प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में कार्यरत समस्त श्रेणी के चिकित्साधिकारी
शासनादेश संख्या-761/45-7-1947 दिनांक 22, अप्रैल 1987
शासनादेश संख्या-865/5-7-949/76 दिनांक 6 मई, 1988
                अराजपत्रित सरकारी कर्मचारियों के चिकित्सकीय प्रमाण पत्र पर अवकाश या अवकाश के प्रसार के लिए दिये गये आवेदन पत्र के साथ निम्न प्रपत्र पर किसी सरकारी चिकित्साधिकारी द्वारा दिया गया प्रमाण पत्र लगा देना चाहिए:-
आवेदक के हस्ताक्षर........................................
                मैं श्री ........................................................ के मामले की सावधानी से व्यक्तिगत परीक्षा करने पर प्रमाणित करता हूं कि श्री ......................................... जिनके हस्ताक्षर ऊपर दिये हुए हैं ........................... से पीड़ित हैं। रोग के इस समय वर्तमान लक्षण हैं ................................. /मेरी राय में रोग का कारण ............................है। आज की तिथि तक गिनकर रोग की अवधि .................................. दिनों की है। जैसा कि श्री ............................. से पूछने पर ज्ञात हुआ, रोग का पूर्ण विवरण निम्नलिखित है ...............................। मैं समझता हूँ कि पूर्णरूप से स्वास्थ्य लाभ करने के लिये दिनांक ...............से ................. तक की अवधि के लिए इनकी ड्यूटी से अनुपस्थिति नितान्त आवश्यक है।
चिकित्साधिकारी
सहायक नियम 95
            श्रेणी 'घ' के सरकारी सेवकों के चिकित्सा प्रमाण पत्र के आधार पर अवकाश या अवकाश के प्रसार के लिए दिये गये आवेदन पत्र के समर्थन  में अवकाश स्वीकृत करने वाले सक्षम प्राधिकारी जिस प्रकार के प्रमाण पत्र को पर्याप्त समझें स्वीकार कर सकते हैं।
सहायक नियम 98
            उस सरकारी कर्मचारी से जिसने एशिया में चिकित्सीय प्रमाण पत्र पर अवकाश लिया हो ड्यूटी पर लौटने से पूर्व निम्नलिखित प्रपत्र पर स्वस्थता के प्रमाण पत्र को प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जायेगी -
            हम/मैं ............................................. एतद् द्वारा यह प्रमाणित करता हूँ कि हमने/मैंने ..................... विभाग के श्री.............................................. की सावधानी से परीक्षा कर ली है और यह पता लगा है कि वह अब अपनी बीमारी से मुक्त हो गये हैं और सरकारी सेवा में ड्यूटी पर लौटने के योग्य हैं।
            हम/मैं यह भी प्रमाणित करते हैं/करता हूँ कि उपयुक्त निर्णय पर पहुँचने के पूर्व हमने/मैंने मूल चिकित्सीय प्रमाण-पत्र का तथा मामले के विवरण का (अथवा अवकाश स्वीकृत करने वाले अधिकारी द्वारा प्रमाणित प्रतिलिपियों का) जिसके आधार पर अवकाश स्वीकृत किया गया था निरीक्षण कर लिया है तथा अपने निर्णय पर पहुँचने के पूर्व इन पर विचार कर लिया है।
सहायक नियम 43क
            राजपत्रित अधिकारी का चिकित्सा प्रमाण पत्र अवकाश या उसके प्रसार के लिए सहायक नियम 89 में उल्लिखित प्रपत्र में प्रमाण-पत्र प्राप्त करना चाहिए। प्राधिकृत चिकित्सा-प्रमाण पत्र अवकाश या उसके प्रसार के लिये सहायक नियम 89 में उल्लिखित प्रपत्र में प्रमाण-पत्र प्राप्‍त करना चाहिए। प्राधिकृत चिकित्साधिकारी यह प्रमाणित कर दें कि उनकी राय में प्रार्थी को चिकित्सा परिषद के समक्ष उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है। जब प्राधिकृत चिकित्सा अधिकारी द्वारा प्रदत्त प्रमाण-पत्र में सरकारी सेवक के चिकित्सा परिषद के समक्ष उपस्थित होने की संस्तुति की जाय अथवा संस्तुत अवकाश की अवधि तीन माह से अधिक हो या तीन माह या उससे कम अवकाश को तीन माह से आगे बढ़ाया जाये तो संबंधित राजपत्रित सरकारी सेवक को उपरोक्त वर्णित प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के बाद अपने रोग के विवरण-पत्र की दो प्रतियां लेकर चिकित्सा परिषद के सम्मुख उपस्थित होना होता है।
सहायक नियम 89 तथा 90
            ऐसे प्रकरणों में जहां संस्तुत अवकाश की अवधि तीन माह से अधिक हो या तीन माह या उससे कम हो अवकाश को तीन माह से आगे बढ़ाया जाये, चिकित्सा परिषद , द्वारा चिकित्सा प्रमाण पत्र प्रदान करते समय उल्लेख कर दिया जाना चाहिए कि संबंधित अधिकारी को ड्यूटी पर लौटने के लिए वांछित स्वस्थता प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिये पुन: परिषद के समक्ष उपस्थित होना है या वह उस प्रमाण पत्र को प्राधिकृत चिकित्सा अधिकारी से प्राप्त कर सकता है।
सहायक नियम 91 की टिप्पणी
4-    मातृत्व (प्रसूति) अवकाश
            प्रसूति अवकाश स्थायी अथवा अस्थायी महिला सरकारी सेवकों को निम्न दो अवसरों पर प्रत्येक के सम्मुख अंकित अवधि के लिए निर्धारित शर्तों के अधीन प्रदान किया जाता है।
1-    प्रसूति के सन्दर्भ में
            प्रसूतावस्था  पर अवकाश प्रारम्भ होने के दिनांक से 135 दिन तक।
            यदि किसी महिला सरकारी सेवक के दो या अधिक जीवित बच्चे हो तो उसे प्रसूति अवकाश स्वीकृत नहीं किया जा सकता, भले ही उसे अवकाश अन्यथा देय हो। फिर भी यदि महिला सरकारी सेवक के दो जीवित बच्चों में से कोई एक बच्चा जन्म से किसी असाध्य रोग से पीड़ित हो या विकलांग या अपंग हो अथवा बाद में उक्त स्थिति उत्पन्न हो गयी हो तो उसे अपवाद स्वरूप एक अतिरिक्त प्रसूति अवकाश स्वीकृत किया जा सकता है, परन्तु प्रसूति अवकाश सम्पूर्ण सेवाकाल में तीन अवसरों से अधिक स्वीकृत नहीं किया जायेगा।
            अन्तिम बार स्वीकृत प्रसूति अवकाश के समाप्त होने के दिनांक से दो वर्ष व्यतीत हो चुके हों, तभी दुबारा प्रसूति अवकाश स्वीकृत किया जा सकता है।
2-    गर्भपात के सन्दर्भ में
            गर्भपात के मामलों में जिसके अन्तर्गत गर्भस्त्राव भी है प्रत्येक अवसर पर 6 सप्ताह तक का अवकाश स्वीकृत  किया जा सकता है।
            अवकाश के प्रार्थना पत्र के समर्थन में प्राधिकृत चिकित्सक का प्रमाण पत्र संलग्न किया जाना चाहिये।
           गर्भपात/गर्भस्त्राव के प्रकरणों में अनुमन्य मातृत्व अवकाश के सम्बन्ध में अधिकतम तीन बार अनुमन्य होने का प्रतिबन्ध शासन के पत्रांक संख्या-4-84/दस-90-216-79 दिनांक 3 मई, 1990 द्वारा समाप्त कर दिया गया है।
मूल नियम 101 एवं सहायक नियम 153
शा0देश सं0: जी-4-394-दस-216-79, दिनांक 4 जून, 1990
            प्रसूति अवकाश को किसी प्रकार के अवकाश लेखे से नहीं घटाया जाता है तथा अन्य प्रकार की छुट्टी के साथ मिलाया जा सकता है।
सहायक नियम 154
अवकाश वेतन
            प्रसूति अवकाश की अवधि में अवकाश पर प्रस्थान करने के ठीक पहले प्राप्त वेतन के बराबर अवकाश वेतन अनुमन्य होता है।
सहायक नियम 153
5-    असाधारण अवकाश
            असाधारण अवकाश निम्न विशेष परिस्थितियों में स्वीकृत किया जा सकता है-
                        जब अवकाश नियमों के अधीन कोई अन्य अवकाश देय न हो।
                        अन्य अवकाश देय होने पर भी संबंधित सरकारी सेवक असाधारण अवकाश प्रदान करने के लिए आवेदन करे।
                        यह अवकाश लेखे से नहीं घटाया जाता है।
मूल नियम 85
स्थायी सरकारी सेवक
            स्थायी सरकारी सेवक को असाधारण अवकाश किसी एक समय में मूल नियम 18 के उपबन्धों के अधीन अधिकतम 5 वर्ष तक की अवधि के लिए स्वीकृत किया जा सकता है।
            किसी की अन्य प्रकार के अवकाश के क्रम में स्वीकृत किया जा सकता है।
मूल नियम 81-ख (6)
अस्थायी सरकारी सेवक
            अस्थायी सरकारी सेवक को देय असाधारण अवकाश की अवधि किसी एक समय में निम्नलिखित सीमाओं से अधिक न होगी :-
  • तीन मास
  • छ: मास यदि संबंधित सरकारी सेवक ने तीन वर्ष की निरन्तर सेवा अवकाश अवधि सहित पूरी कर ली हो तथा अवकाश के समर्थन में नियमों के अधीन अपेक्षित चिकित्सा प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया हो।
  • 18 मास-यदि संबंधित सरकारी सेवक ने एक वर्ष की निरन्तर सेवा पूरी कर ली हो और वह क्षय रोग अथवा कुष्ठ रोग का उपचार करा रहा हो।
  • चौबीस मास-सम्पूर्ण अस्थायी सेवा की अवधि में 36 मास की अधिकतम सीमा के अधीन रहते हुए जनहित में भारत अथवा विदेश में अध्ययन करने के लिए इस प्रतिबन्ध के अधीन देय है कि संबंधित सेवक ने तीन वर्ष की निरन्तर सेवा पूरी कर ली है।
सहायक नियम 157क (4)
अवकाश वेतन
            असाधारण अवकाश की अवधि के लिए कोई अवकाश वेतन देय नहीं है।
मूल नियम 85, 87(क) (4) एवं सहायक नियम 157क(6)(ग)
6-    चिकित्सालय अवकाश
            अधीनस्थ सेवाओं के कर्मचारियों को, जिनकी ड्यूटी में दुर्घटना या बीमारी का विशेष खतरा हो, अस्वस्थता के कारण अवकाश प्रदान किया जा सकता है।
मूल नियम-101
            चिकित्सालय अवकाश उस प्राधिकारी के द्वारा प्रदान किया जा सकता है जिसका कर्तव्य उस पद को (यदि वह रिक्त हो) भरने का होता है।
            यह अवकाश उन्हीं सरकारी सेवकों को देय है जिनका वेतन रू0 1180 प्रति मास से अधिक न हो। (पुराने वेतनमान में)
            ऐसे समस्त स्थायी अथवा अस्थायी सरकारी सेवकों, जिन्हें अपने कर्तव्यों के कारण खतरनाक मशीनरी, विस्फोटक पदार्थ, जहरीली गैसें अथवा औषधियों आदि से काम करना पड़ता है अथवा जिन्हें अपने कर्तव्यों, जिनका उल्लेख सहायक नियम 155 के उप नियम (5) में है के कारण दुर्घटना अथवा बीमारी का विशेष जोखिम उठाना पड़ता है, को शासकीय कर्तव्यों के परिपालन के दौरान  दुर्घटना या बीमारी से ग्रसित  होने पर चिकित्सालय/औषधालय में भर्ती होने पर अथवा वाह्य रोगी के रूप में चिकित्सा कराने हेतु प्रदान किया जाता है।
            यह अवकाश चाहे एक बार में लिया जाये अथवा किश्तों में किसी भी दशा में तीन वर्ष की कालावधि में छ: माह से अधिक स्वीकृत नहीं की जायेगी।
सहायक नियम 155
            चिकित्सालय अवकाश को अवकाश लेखे से नहीं घटाया जाता है तथा इसे अन्य देय अवकाश से संयोजित किया जा सकता है, परन्तु शर्त यह है कि कुल मिलावट अवकाश अवधि 28 माह से अधिक नहीं होगी।
सहायक नियम 156
अवकाश वेतन
            चिकित्सालय अवकाश अवधि के पहले तीन माह तक के लिए वही अवकाश वेतन प्राप्त होता है जो वेतन अवकाश पर प्रस्थान करने के तुरन्त पूर्व प्राप्त हो रहा हो। तीन माह से अधिक की शेष अवधि के लिये गये अवकाश वेतन उक्त दर के आधे के हिसाब से दिया जाता है।
सहायक नियम 155 (3)
7-    अध्ययन अवकाश
            जन स्वास्थ्य तथा चिकित्सा अन्वेषण विभागों, पशुपालन विभाग, कृषि विभाग, शिक्षा विभाग, सार्वजनिक निर्माण विभाग तथा वन विभागों में कार्यरत् स्थायी सरकारी सेवकों को जनहित में किन्हीं वैज्ञानिक, प्राविधिक अथवा इसी प्रकार की समस्याओं के अध्ययन या विशेष पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिए निर्धारित शर्तों के अधीन अध्ययन अवकाश दिया जा सकता है। शासन द्वारा इन नियमों को उपर्युक्त विभागों से भिन्न किसी भी अन्य सरकारी कर्मचारी के ऊपर भी लागू किया जा सकता है जिसके मामले में उनकी यह राय हो कि अध्ययन के किसी विशेष पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिये अथवा किसी वैज्ञानिक या तकनीकी प्रकार के अन्वेषण के लिये जनहित में अवकाश स्वीकृत करना चाहिए।
            यह अवकाश भारत में अथवा भारत क बाहर अध्ययन करने के लिए स्वीकृत किया जा सकता है। जिन सरकारी सेवकों ने पांच वर्ष से क्रम सेवा की हो अथवा जिन्हें सेवानिवृत्ति होने का विकल्प देने को तीन वर्ष या उससे कम समय रह गया हो, उनको अध्ययन अवकाश साधारणतया प्रदान नहीं किया जाता है।
             एक बार में बारह माह के अवकाश को साधारणतया उचित अधिकतम सीमा माना जाना चाहिए तथा केवल साधारण कारणों को छोड़कर इससे अधिक अवकाश किसी एक समय में नहीं दिया जाना चाहिए।
            सम्पूर्ण सेवा अवधि में कुल मिलाकर 2 वर्ष तक का अध्ययन अवकाश प्रदान किया जा सकता है।
          असाधारण अवकाश या चिकित्सा प्रमाण-पत्र पर अवकाश को छोड़कर अन्य प्रकार के अवकाश को अध्ययन अवकाश के साथ मिलाये जाने की दशा में सकल अवकाश अवधि के परिणाम स्वरूप संबंधित सरकारी सेवक की अपनी नियमित ड्यूटी से अनुपस्थिति 28 महीने से अधिक नहीं होनी चाहिए।
अवकाश वेतन
            अध्ययन अवकाश काल में अर्द्ध वेतन अनुमन्य होता है।
    मूल नियम 84 एवं सहायक नियम 146क
8-    विशेष विकलांगता अवकाश
            राज्यपाल किसी ऐसे स्थायी अथवा अस्थायी सरकारी सेवक को जो किसी के द्वारा जानबूझ कर चोट पहुँचाने के फलस्वरूप अथवा अपने सरकारी कर्तव्यों के उचित पालन में या उसके फलस्वरूप चोट लग जाने अथवा अपनी अधिकारीय स्थिति के परिणाम स्वरूप चोट लग जाने के कारण अस्थायी रूप में विकलांग हो गया हो, को विशेष विकलांगता अवकाश प्रदान कर सकते हैं।
            अवकाश तभी स्वीकृत किया जा सकता है जबकि विकलांगता, उक्त घटना के दिनांक से तीन माह के अन्दर प्रकट हो गई हो तथा संबंधित सेवक ने उसकी सूचना तत्परता से यथासम्भव शीघ्र दे दी हो। राज्यपाल विकलांगता के बारे में संतुष्ट होने की दशा में घटना के तीन माह के पश्चात् प्रकट हुई विकलांगता के लिए भी अवकाश प्रदान कर सकते हैं।
            किसी एक घटना के लिए एक बार से अधिक बार भी अवकाश प्रदान किया जा सकता है। विकलांगता बढ़ जाये अथवा भविष्य में पुन: वैसी ही परिस्थितियाँ प्रकट हो जाय तो अवकाश ऐसे अवसरों पर एक से अधिक बार भी प्रदान किया जा सकता है।
            अवकाश चिकित्सा परिषद द्वारा दिये गये चिकित्सा प्रमाण-पत्र के आधार पर प्रदान किया जा सकता है तथा अवकाश की अवधि चिकित्सा परिषद द्वारा की गयी संस्तुति पर निर्भर रहती है, परन्तु यह चौबीस महीने से अधिक नहीं होगी।
अवकाश वेतन
            चार महीने पूर्ण औसत वेतन तथा शेष अवधि में अर्द्ध औसत वेतन पर।
मूल नियम 83 तथा 83 क
9-    लघुकृत अवकाश
            लघुकृत अवकाश अलग से कोई अवकाश नहीं है। मूल नियम 84 के अधीन उच्चतर वैज्ञानिक, प्राविधिक या इसी प्रकार की समस्याओं के अध्ययन के लिये या विशेष पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिये अध्ययन अवकाश पर जाने वाले स्थायी सरकारी सेवकों के विकल्प पर उनको निजी कार्य पर अवकाश स्वीकृत किये जाने योग्य जमा कुल अवकाश का आधा अवकाश लघुकृत अवकाश के रूप में स्वीकृत किया जा सकता है।
            यह अवकाश एशिया में 45 दिन तथा एशिया के बाहर 90 दिन तक एक बार में स्वीकृत किया जा सकेगा।
            जितनी अवधि के लिये लघुकृत अवकाश स्वीकृत किया जाता है उसकी दुगुनी अवधि उसके निजी कार्य पर अवकाश खाते में जमा अवकाश में से घटा दी जाती है। किसी एक बार स्वीकृत‍ किये जाने वाले अवकाश की अधिकतम अवधि निजी कार्य पर अवकाश की स्वीकृति हेतु निर्धारित अधिकतम अवकाश के आधे के बराबर है।
            यह अवकाश तभी स्वीकृत किया जायेगा जब स्वीकर्ता अधिकारी को यह समाधान हो जाये कि अवकाश समाप्ति पर सरकारी कर्मचारी सेवा में वापस आयेगा।
मूल नियम 81-ख(4)
अवकाश वेतन
            अर्जित अवकाश की तरह अवकाश पर जाने से ठीक पहले प्राप्त वेतन अवकाश वेतन के रूप में अनुमन्य है।
मूल नियम 87-क(4)
(II)    मैनुअल आफ गवर्नमेंट आर्डर, उत्तर प्रदेश के अध्याय 142 के अधीन अवकाश
आकस्मिक अवकाश, विशेष अवकाश  तथा प्रतिकर अवकाश
            वित्तीय हस्त पुस्तिका खण्ड-दो (भाग 2 से 4) के सहायक नियम 201 के अनुसार आकस्मिक अवकाश को अवकाश की मान्यता नही है और न यह किसी नियम के अधीन है। आकस्मिक अवकाश पर सरकारी कर्मचारी को ड्यूटी से अनुपस्थित नहीं माना जाता और वेतन देय होता है।
            मैनुअल आफ गवर्नमेंट आर्डर, उत्तर प्रदेश के अध्याय 142 में आकस्मिक अवकाश, विशेष अवकाश और प्रतिकर अवकाश से संबंधित नियम दिये गये हैं।
प्रस्तर 1081 - आकस्मिक अवकाश के दौरान कार्य का उत्तरदायित्व
            आकस्मिक अवकाश को मूल नियम के अन्तर्गत मान्यता प्राप्त नहीं है। इसलिए आकस्मिक अवकाश की अवधि में सरकारी सेवक सभी प्रयोजनों के लिए ड्यूटी पर माना जाता है।
            आयस्मिक अवकाश के दौरान किसी प्रतिस्थानी की तैनाती नहीं की जायेगी।
           यदि कार्यालय के कार्य में किसी प्रकार का व्यवधान होता है तो आकस्मिक अवकाश स्वीकृत करने वाला अधिकारी तथा लेने वाला कर्मचारी इसके लिए उत्तरदायी होगा।
प्रस्तर 1082-आकस्मिक अवकाश की सीमा
            एक कैलेण्डर वर्ष में सामान्यतया 14 दिन का आकस्मिक अवकाश दिया जा सकता है।
           एक समय में 10 दिन से अधिक का आकस्मिक अवकाश विशेष परिस्थितियों में ही दिया जाना चाहिए।
            आकस्मिक अवकाश के साथ रविवार एवं अन्य छुट्टियों को सम्बद्ध किये जाने की स्वीकृति दी जा सकती है।
            रविवार, छुट्टियों एवं अन्य अकारी दिवस यदि आकस्मिक अवकाश के बीच में पड़ते हैं तो उन्हें जोड़ा नही जायेगा।
विशेष आकस्मिक अवकाश
            विशेष  परिस्थितियों में कुछ दिन का विशेष अवकाश दिया जा सकता है। परन्तु इस अधिकार का प्रयोग बहुत कम और केवल उसी दशा में किया जाना चाहिए जबकि ऐसा करने के लिए पर्याप्त औचित्य हो।
शासनादेश सं0: 1094/बी-181/1957, दिनांक: 21 जुलाई, 1962
1-    लिपिक वर्गीय कार्मिकों के अतिरिक्त अन्य को दिए गए विशेष अवकाशों की सूचना सकारण प्रशासकीय विभाग को भेजनी होगी।
2-    शा0सं0 बी-820/दो-बी-ज 55, दिनांक 27-12-1955 तथा एम0जी0ओ0 का पैरा 882 व 1087 - राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय खेलकूद में भाग लेने के लिए चयनित खिलाड़ियों को 30 दिन का विशेष आकस्मिक अवकाश दिया जा सकता है।
3-    मान्यता प्राप्त सेवा संघों/परिसंघों के अध्यक्ष एवं सचिव को एक कैलेण्डर वर्ष में अधिकतम 07 दिन का तथा कार्यकारिणी के सदस्यों का अधिकतम 04 दिन  का विशेष आकस्मिक अवकाश देय होगा। कार्यकारिणी के उन्हीं सदस्यों को यह सुविधा अनुमन्य होगी जो बैठक के स्थान से बाहर से आये।
(शा0सं0-1694/का-1/83, दिनांक 5-7-83
तथा 1847/का-4-ई-एक-81-83, दिनांक 4-10-83)
प्रस्तर 1083 - आकस्मिक अवकाश पर मुख्यालय छोड़ने की पूर्व अनुमति
        आकस्मिक अवकाश लेकर मुख्यालय छोड़ने की दशा में सक्षम अधिकारी की पूर्व स्वीकृति आवश्यक है।
        अवकाश अवधि में पता भी सूचित किया जाना चाहिए।
प्रस्तर 1084 - समुचित कारण
        आकस्मिक अवकाश समुचित कारण के आधार पर ही स्वीकृत किया जाना चाहिए।
        सरकारी दौरे पर रहने की दशा में आकस्मिक अवकाश लेने पर उस दिन का दैनिक भत्ता अनुमन्य नहीं है।
प्रस्तर 1085 - सक्षम अधिकारी
         आकस्मिक अवकाश केवल उन्हीं अधिकारियों द्वारा स्वीकृत किया जा सकता है जिन्हें शासनादेशों के द्वारा समय-समय पर अधिकृत किया गया है। किसी भी प्रकार का संशय होने पर अपने प्रशासनिक विभाग को सन्दर्भ भेजा जाना चाहिये।
प्रस्तर 1086 - आकस्मिक अवकाश रजिस्टर
        आकस्मिक अवकाश स्वीकृत करने वाले सक्षम अधिकारी द्वारा आकस्मिक अवकाश तथा निर्बन्धित अवकाश का लेखा निम्न प्रारूप पर अनिवार्य रूप से रखा जायेगा। इस रजिस्टर का परीक्षण निरीक्षणकर्ता अधिकारियों द्वारा समय-समय पर किया जायेगा।
कर्मचारी का नाम स्वीकृत किया गया आकस्मिक अवकाश

निर्बन्धित अवकाश
पदनाम 14    13    12    11   .............................. 2           1
प्रस्तर 1087 - विशेष आकस्मिक अवकाश की स्वीकृति
निम्नलिखित मामलों में सरकारी सेवकों को विशेष आकस्मिक अवकाश स्वीकृत किये जाने की व्यवस्था की गयी है:-
1- विश्वविद्यालय सीनेट के सदस्य
 -
यात्रा समय सहित बैठक की अवधि तक के लिये
2- परिवार नियोजन, नसबन्दी (पुरूष) - 6 कार्य दिवस
3- नसबन्दी (महिला) - 14 कार्य दिवस
4- वैज्ञानिकों, अधिकारियों को किसी वर्कशाप/ सेमिनार में शोध पत्र पढ़ने हेतु - यात्रा समय सहित वर्कशाप की अवधि
प्रस्तर 1088 - भारतवर्ष से बाहर जाने के लिए अवकाश
            भारतवर्ष से बाहर जाने के लिये आवेदित किये गये अवकाश (आकस्मिक अवकाश सहित) की स्वीकृति सक्षम अधिकारी द्वारा शासन की पूर्वानुमति के नहीं दी जायेगी।
प्रस्तर 1089 - प्रतिकर अवकाश
  • अराजपत्रित कर्मचारी को उच्चतर प्राधिकारी के आदेशों के अधीन छुट्टियों में अतिरिक्त कार्य को निपटाने के लिए बुलाये जाने पर प्रतिकर अवकाश दिया जायेगा।
  • यदि कर्मचारी ने आधे दिन काम किया है तो उसे आधे दिन मिलाकर एक प्रतिकर अवकाश दिया जायेगा।
  • अवकाश के दिन स्वेच्छा से आने वाले कर्मचारी को यह सुविधा उपलब्ध नहीं है।
  • प्रतिकर अवकाश का देय तिथि से एक माह के अन्दर उपभोग कर लिया जाना चाहिये।
  •  यदि ज्यादा कर्मचारियों को प्रतिकर अवकाश दिया जाना है तो सरकारी कार्य में बाधा न पड़ने की दृष्टि से एक महीने की शर्त को शिथिल किया जा सकता है।
  • दो दिन से अधिक प्रतिकर अवकाश एक साथ नहीं दिया जायेगा।
  • आकस्मिक अवकाश स्वीकृत करने वाला अधिकारी प्रतिकर अवकाश की स्वीकृति के लिए सक्षम है। यह अवकाश केवल अराजपत्रित कर्मचारियों को देय है।
(III)    रोजगार अवकाश
                    उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (रोजगार अवकाश) नियमावली दिनांक : 31 मार्च, 2008 तक लागू रहेगी।
                    रोजगार अवकाश का तात्पर्य ऐसे अवकाश से है जो सरकारी विभाग, अर्द्धसरकारी विभाग, किसी निगम, परिषद, सार्वजनिक उपक्रम या उत्तर प्रदेश सरकार के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन किसी निकाय से भिन्न किसी संगठन में किसी प्रकार के निजी व्यापार या कारोबार या रोजगार आदि करने के लिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा किसी सरकारी सेवक को स्वीकृत किया जाय।
                    सरकारी सेवक का तात्पर्य अखिल भारतीय सेवा से भिन्न उत्तर प्रदेश राज्य के ऐसे सरकारी सेवक से है जो-
            1-    मौलिक रूप से नियुक्त नियमित सरकारी सेवक हो,
            2-    तदर्थ, दैनिक वेतन, नियत वेतन या संविदा आधार पर नियुक्त न किये गये हो।
            यह नियमावली ऐसे स्थायी सेवकों सरकारी सेवकों पर लागू होगी जिन्होंने सेवा में स्थायीकरण किये जाने के पश्चात् कम से कम 5 वर्ष की सेवा पूरी कर ली और जो अखिल भारतीय सेवाओं से भिन्न उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार के किसी सरकारी विभाग में किसी पद पर नियुक्त हों।
यह नियमावली निम्नलिखित सरकारी सेवकों पर लागू नहीं होगी :-
विभाग श्रेणियाँ
चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग चिकित्सा कर्मचारी, पैरामेडिकल कर्मचारी और तकनीकी कर्मचारी
चिकित्सा शिक्षा अध्यापन कर्मचारी, चिकित्सा कर्मचारी, पैरा मेडिकल कर्मचारी और तकनीकी कर्मचारी
तकनीकी शिक्षा विभाग अध्यापन कर्मचारी, पुस्तकालय कर्मचारी, प्रयोगशाला कर्मचारी
उच्च शिक्षा अध्यापन कर्मचारी, पुस्तकालय कर्मचारी, खेल कर्मचारी एवं प्रयोगशाला कर्मचारी
बेसिक तथा माध्यमिक शिक्षा अध्यापक  कर्मचारी, पुस्तकालय कर्मचारी
गृह (पुलिस) अलिपिकीय वर्गीय श्रेणी
परिवीक्षाधीन सरकारी सेवक
            ऐसे सरकारी सेवक जो निलम्बित हो या जिसके विरूद्ध अभियोजन या विभागीय कार्यवाही लम्बित हो वे रोजगार अवकाश के लिए पात्र न होंगे।
            ऐसे सरकारी सेवक जिन्होंने एक निश्चित अवधि के लिए अपनी सेवायें प्रदान करने के लिए सरकार के साथ कोई बन्ध पत्र निष्पादित किया है तो किसी नियम अवधि के समापन के पूर्व वे रोजगार अवकाश के लिए पात्र न होंगे।
            रोजगार अवकाश पूरा होने पर और सरकारी सेवा में अपने पद पर पुन: कार्यभार ग्रहण करने पर उसके द्वारा रोजगार अवकाश अवकाश अवधि में किये गये कार्य और रोजगार का एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जायेगी।
            रोजगार अवकाश को चाहने वाला सरकारी सेवक राज्य सरकार के अन्य विभाग या राज्य सरकार के स्वामित्व में नियंत्रित या सहायता प्राप्त किसी निगम, कम्पनी या स्वायत्तशासी संस्था, स्थानीय प्राधिकरण, स्थानीय बोर्ड, स्थानीय निकास समिति आदि में नियुक्ति के लिये पात्र न होगा।
            ऊपर उल्लिखित कार्यालयों और संस्थाओं में परामर्शदाता के रूप में भी कार्य करने के लिए पात्र न होगा।
            रोजगार अवकाश के दौरान सरकारी सेवक भारत या विदेश में कोई अन्य सेवा या स्वरोजगार करने का स्वतंत्र होगा।
            रोजगार अवकाश पर आने के पूर्व सरकारी सेवक द्वारा धारित पद रिक्त रखा जायेगा और किसी भी रीति से उसे भरा नहीं जाएगा।
अवकाश अवधि
            सरकारी सेवक को न्यूनतम तीन वर्ष की अवधि और अधिकतम पाँच वर्ष की अवधि का रोजगार अवकाश स्वीकृत किया जा सकता है।
            ऐसे सरकारी सेवकों को किसी भी दशा में तीन वर्ष पूरा करने के पूर्व रोजगार अवकाश से सरकारी सेवा में कार्य पर वापस आने की अनुमति प्रदान नहीं की जायेगी।
            यदि पाँच वर्षों की अवधि के पश्चात कोई सरकारी सेवक सरकारी सेवा में वापस नहीं लौटता है तो-
  1. यदि उसने पेंशन हेतु अर्हकारी सेवा की अपेक्षित समयावधि पूर्ण कर ली है तो यह समझा जायेगा कि उसने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली है।
  2. यदि उसके द्वारा पेंशन हेतु अर्हकारी सेवा की अपेक्षित समयावधि पूर्ण नहीं की गई है तो यह समझा जायेगा कि उसने सरकारी सेवा से त्याग पत्र दे दिया है।
सक्षम प्राधिकारी
            समूह 'क' और समूह 'ख' के पदों के सरकारी सेवकों की दशा में राज्य सरकार और समूह 'ग' और समूह 'घ' के पदों के सरकारी सेवकों की दशा में विभागाध्यक्ष रोजगार अवकाश स्वीकृत/अस्वीकृत करने के लिए सशक्त होंगे।
अवकाश वेतन
            रोजगार अवकाश के दौरान संबंधित सरकारी सेवक अपने मूल वेतन की धनराशि और उस पर भत्तों (मँहगाई भत्ता, नगर प्रतिकर भत्ता एवं मकान किराया भत्ता आदि) जो उसे ऐसे अवकाश पर जाने के तत्काल पूर्व अनुमन्य था, के पचास प्रतिशत धनराशि पाने का हकदार होगा।
            रोजगार अवकाश की अवधि, वार्षिक वेतन वृद्धि प्रदान करने के प्रयोजनार्थ संगणित नही की जायेगी।
            किसी सरकारी सेवक को रोजगार अवकाश स्वीकृत करने के लिए सशक्त प्राधिकारी रोजगार अवकाश की अवधि के दौरान उसका वेतन आहरित करने के लिए सक्षम होगा।
            सामान्य भविष्य निधि, सामूहिक बीमा योजना, मकान किराया और आयकर आदि की कटौतियाँ संबंधित सरकारी सेवक के वेतन से नियमानुसार की जायेंगी।
            सरकारी सेवक को उनके रोजगार अवकाश पर जाने के पूर्व स्वीकृत भवन का निर्माण या वाहन क्रय इत्यादि के प्रयोजनार्थ ऋणों की वसूली रोजगार अवकाश की अवधि के दौरान नियमानुसार जारी रहेगी।
अन्य लाभ
            रोजगार अवकाश की अवधि में किसी सरकारी सेवक की मृत्यु होने की दशा में वह नियमानुसार परिवार कल्याण योजना या सामूहिक बीमा योजना से संबंधित प्रवृत्त नियमों के अधीन उपबन्धित लाभ पाने का हकदार होगा।
            सरकारी सेवक को अपने रोजगार अवकाश की अवधि में पूर्व आवंटित सरकारी आवास बनाये रखने की अनुज्ञा दी जा सकती है। इस प्रयोजन के लिए उससे प्रथम तीन माह के लिए मानक किराया और उसके पश्चात् प्रचलित बाजार दर पर किराये का भुगतान करने की अपेक्षा की जायेगी।
            सरकारी सेवक, रोजगार अवकाश की अवधि में चिकित्सा प्रतिपूर्ति की सुविधा प्राप्त करने के लिए पात्र न होगा।
            रोजगार अवकाश की अवधि के दौरान किसी अन्य प्रकार के अवकाश की अनुमन्यता न होगी और ऐसी अवधि किसी अन्य प्रकार के अवकाश की पात्रता के लिए भी संगणित नहीं की जायेगी।
            रोजगार अवकाश  के दौरान संबंधित सरकारी सेवक की ज्येष्ठता प्रभावित न होगी किन्तु वह पदोन्नति का हकदार न होगा। यदि उससे कनिष्ठ व्यक्ति को पदोन्नति किया जा चुका है तो उसके रोजगार अवकाश से वापस लौटने पर उसका काल्पनिक पदोन्नति देने पर विचार किया जा सकता है।
            रोजगार अवकाश की अवधि को पेंशन के लिए अर्हकारी सेवा की संगणना के प्रयोजनार्थ नहीं गिना जायेगा।
रोजगार अवकाश की अवधि के दौरान त्याग पत्र अथवा स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति
            कोई सरकारी सेवक जो रोजगार अवकाश पर है उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक त्याग पत्र नियमावली, 2000 के उपबन्धों के अनुसरण में रोजगार अवकाश की अवधि के दौरान किसी भी समय त्याग पत्र दे सकता है।
            कोई सरकारी सेवक जो रोजगार अवकाश पर है और जिसने पेंशन के प्रयोजनार्थ अर्हकारी सेवा की अपेक्षित समयावधि पूर्ण कर ली हैं रोजगार अवकाश की अवधि के दौरान किसी भी समय सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले सकता है।
शासनादेश संख्या-13/10/2002-क-1-2003, दिनांक 4 जनवरी, 2003
सन्दर्भ :-साभार - http://fcs.up.nic.in/Go-lekha-shakha/Lesson%20No.%2011%20Checked.htm
वित्तीय हस्तपुस्तिका खण्ड-दो (भाग 2 से 4) में वर्णित मूल नियम 58 से 104 एवं सहायक नियम 35 से 172
उ0प्र0 फण्डामेन्ट्स (प्रथम संशोधन) नियमावली, 1992
उ0प्र0 सब्सीडियरी (अमेंन्उमेंट) नियमावली, 1992
उ0प्र0 सब्सीडियरी (प्रथम संशोधन) नियमावली, 1996
उ0प्र0 सब्सीडियरी (द्वितीय संशोधन) नियमावली, 1990
समय-समय पर निर्गत शासनादेश।


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