Wednesday, 24 May 2017

अर्थशास्त्र का एक अध्ययन.

सुशील डोभाल, प्रवक्ता अर्थशास्त्र.विद्यालयी शिक्षा विभाग उत्तराखंड


               "अर्थशास्त्र विषय प्राचीन समय से ही एक लोकप्रिय विषय के रूप में प्रसिद्द रहा है और इस विषय में आज भी अपार संभावनाएं निहित हैं. मानविकी वर्ग का यह विषय आज के छात्र छात्राओं में  जटिलतम विषय के रूप जाना जाता  है. छात्र छात्राएं यदि अर्थशास्त्र का क्रमवद्ध ढंग से रोज निरंतर अध्ययन करें तो उनकी  विषयगत समस्या का स्वत ही समाधान हो सकता है. यहाँ मै इस पोस्ट के माध्यम से छात्र-छात्राओं और अर्थशास्त्र विषय के प्रति रूचि रखने वाले समस्त पाठकों का अर्थशास्त्र विषय से विस्तारपूर्वक परिचय करवाने का प्रयास कर रहा हूँ. आशा करता हूँ की पोस्ट के अध्ययन से आपको विषयगत लाभ अवश्य मिलेगा."
                                               (सुशील डोभाल, प्रवक्ता अर्थशास्त्र. विद्यालयी शिक्षा विभाग उत्तराखंड)

व्यष्टि अर्थशास्त्र

        यह वैयक्तिक इकाइयों का अध्ययन करता है, जैसे व्यक्ति, परिवार, फर्म, उद्योग, विशेष वस्तु का मूल्य। बोल्डिग केअनुसार, व्यष्टि अर्थशास्त्र विशेष फर्मो, विशेष परिवारों, वैयक्तिक कीमतों, मजदूरियों, आयों, वैयक्तिक उद्योगों तथा विशिष्ट वस्तुओं का अध्ययन है। यह सीमांत विश्लेषण को महत्व देता है।

समष्टि अर्थशास्त्र :

           समष्टि अर्थशास्त्रआधुनिक आर्थिक सिंद्धान्त के बहुत से महत्वपूर्ण विषय जैसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार, विदेशी विनिमय, राजस्व, बैकिंग, व्यापार चक्र, राष्ट्रीय आय तथा रोजगार के सिद्धांत, आर्थिक नियोजन एवं आर्थिक विकास आदि का अध्ययन इसके अंतर्गत होता है। बोल्डिग के शब्दों में, समष्टि अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र का वह भाग है जो अर्थशास्त्र के बड़े समूहों और औसतों का अध्ययन करता है, न कि उसकी विशेष मदों का। वह इन समूहों को उपयोगी ढँग से परिभाषित करने का प्रयत्न करता है तथा इनके पारस्परिक संबंधों को जाँचता है।संक्षेप में ये ही अर्थशास्त्र के अंग है। केंस के बाद के आधुनिक अर्थशास्त्री अब कुछ नए नामों से अर्थशास्त्र के विभिन्न अंगों का विवेचन करते हैं, जैसे पूंजी का अर्थशास्त्र, पूँजी निर्माण, श्रम अर्थशास्त्र, यातायात का अर्थशास्त्र, मौद्रिक अर्थशास्त्र, केंसीय अर्थशास्त्र, अल्प विकसित देशों का अर्थशास्त्र, विकास का अर्थशास्त्र, तुलनात्म्क अर्थशास्त्र, अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्र आदि।  आधुनकि काल में देश विदेश में अर्थशास्त्र विषय की स्नातकोत्तर शिक्षा भी इन्हीं नामों के प्रश्नपत्रों के अनुसार दी जाती है।
 आर्थिक क्रियांए 
        अर्थशास्त्र की विषय सामग्री के सम्बन्ध में आर्थिक क्रियाओं का वर्णन भी जरूरी है।  उत्पादन, उपभोग, विनिमय तथा वितरण किसी भी अर्थव्यवस्था की प्रमुख आर्थिक क्रियाएं होती हैं.  आधुनिक अर्थशास्त्र में इन क्रियाओं को पांच भागों में बांटा जा सकता है।
उत्पादन (Production)
उपभोग (Consumption )
विनिमय (Exchange)
वितरण (Distribution)
राजस्व (Public Finance)
         आर्थिक क्रियाओं के उद्देश्य के आधार पर 1933 में सर्वप्रथम रेगनर फ्र्रिश (Ragnor Frisch) ने अर्थशास्त्र को दो भागों में बांटा। व्यक्तिगत अर्थशास्त्र (Micro Economics) समष्टिगत अर्थशास्त्र (Macro Economics) अंतरराष्ट्रीय व्यापार, विदेशी विनियम, बैंकिंग आदि समष्टि अर्थशास्त्र के रूप हैं। संक्षेप में, अध्ययन के दृष्टिकोण से अर्थशास्त्र के विभिन्न अंगों को हम इस प्रकार रख सकते हैं: 
 आर्थिक प्रणालियां :
             आर्थिक क्रियाओं को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए प्रत्येक देश अलग-अलग आर्थिक प्रणाली अपनाता हैं। आर्थिक प्रणालियों को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है।(१) पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalistic Economy)(२) समाजवादी अर्थव्यवस्था (Socialistic Economy)(३) मिश्रित अर्थ व्यवस्था (Mixed Economy) आधुनिक अर्थिक प्रणिलियों में समाजवाद तथा पूंजीवाद का सर्वाधिक उल्लेख हो रहा है। आर्थिक नीतियां प्रत्येक देश, चाहे वह किसी भी आर्थिक प्रणाली के अन्तर्गत काम करता है, उसको विभिन्न आर्थिक समस्याओं जैसे गरीबी, धन व आय की असमानता, बेरोजगारी, मुद्रास्फीति व मन्दी आदि का सामना करना पडता हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए वह विभिन्न नीतियों को अपनाता है। मुख्य आर्थिक नीतियां इस प्रकार है।मौद्रिक नीति (Monetary Policy)राजकोषीय नीति (Fiscal Policy)कीमत नीति (Price Policy)आय नीति (Income Policy)रोजगार नीति (Employment Policy)आर्थिक योजना (Economic Planning)प्रसिद्ध अर्थशास्त्रीआदम स्मिथजॉन मेनार्ड कीन्सकार्ल मार्क्सप्रसिद्ध भारतीय अर्थशास्त्रीभारत की अर्थशास्त्र को जानने, समझने और प्रयोग में लाने की अपनी विशेष पंरपरा रही है। यह दु:ख का विषय है कि प्राचीन एव नवीन भारतीय अर्थशास्त्रियों की प्रमुख कृतियों का मूल्यांकन उचित रूप से अभी तक नहीं किया गया है और हमारे विद्यार्थी केवल पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों एवं उनके सिद्धांतो को पढ़ते रहे हैं। प्राचीन काल के आर्थिक विचारों को हम वेदों, उपनिषदों, महाकाव्यों, धर्मशास्त्रों, गृह्मसूत्रों, नारद, शुक्र, विदुर के नीतिग्रंथों और सर्वाधिक रूप से कौटिल्य के अर्थशास्त्र से प्राप्त करते हैं।वर्तमान समय में मुख्य भारतीय अर्थशास्त्रियों में-(१) दादाभाई नौरोजी (1825),(२) महादेव गोविंद रानाडे (1842),(३) रमेशचंद्र दत्त (1848),(४) गोपाल कृष्ण गोखले (1866),(५) महात्मा गांधी (1869) तथा(५) विश्वेश्वरैया (1861) के नाम उल्लेखनीय है।
       सर्वोदय अर्थशास्त्र महात्मा गांधी द्वारा प्रणीत तथा आचार्य विनोबा भावे द्वारा प्रयोग में लाई गई अर्थशास्त्र की यह विचारधारा अति आधुनिक है और भारतीयों की विशिष्ट देन है। इसके अतंर्गत ग्रामस्वराज्य, स्वावलंबन, सहअस्तित्व के प्रयोग तथा अहिंसक क्रांति जैसे विचार हैं, जो, जयप्रकाश नारायण के शब्दों में, भारत में ही नहीं, विश्व में कहीं भी कभी भी आर्थिक कांति ला सकते हैं। इनका प्रयोग नई शिक्षा के साथ साथ भारत में हो रहा है।गणितीय अर्थशास्त्रआधुनिक अर्थशास्त्र आधे से अधिक गणितीय माडलों, साध्यों, समीकरणों तथा फारमूलों (सुत्रों) में बंध गया है। पूर्व में सांख्यिकी का प्रयोग अर्थशास्त्री ऐच्छिक रूप से करते थे परंतु अब वह अर्थशास्त्र के हेतु अनिवार्य हो गया है। इसके अतिरिक्त अर्थमिति भी विकास माडलों में पूर्ण विकसित हो रही है। प्रवैगिक रूप में 'इन-पुट आउट-पुट विश्लेषण' से लेकर अर्थशास्त्र ने 'गेम थ्योरी' तथा 'टेक्निकल फ्लो' तक निकाल डाला है। आर्थिक सिद्धांतों को स्पष्ट करने हेतु गणितीय औजारों का प्रयोग सब अर्थशास्त्री कर रहे हैं। लिनियर प्रोग्रामिंग' तथा 'विभेदीकीकरण प्रक्रिया' के अंतर्गत अर्थशास्त्री गणितीय (विशेष बीजगणितीय सूत्रों से) दृश्य प्रभावों के साथ-साथ अदृश्य आर्थिक प्रभावों को भी दिखाने का प्रयत्न कर रहे हैं। गणना की छोटी मशीन से लेकर विशालतम कंप्यूटर तक अर्थशास्त्रियों की गणितीय प्रगति के व्यावहारिक रूप हैं। संभवत: अगले दो तीन दशक तक ऐसी विधियाँ अविष्कृत हो जाएँगी जिनसे गणितीय विधियों द्वारा अति संक्षेप में केवल निष्कर्ष प्राप्त होंगे तथा प्रक्रिया का कोई भी तालमेल बैठाना आवश्यक न होगा।
                      आजकल अर्थशास्त्री गणितीय अर्थशास्त्र पद्धति पर सबसे अधिक निर्भर कर रहे हैं।अल्पविकसित देशों का विकासव्यावहारिक अर्थशास्त्र गरीब एवं साधनरहित देशों की व्यावहारिक समस्याओं को सुलझा रहा है। गुनार म्रिडल कृत एशियन ड्रामा संभवत: मार्क्स के दास कैपिटल के बाद सबसे बड़ा अर्थशास्त्रीय ग्रंथ प्रकाशित हुआ है जिसमें अल्पविकसित देशों की समस्याएँ सुलझाई गई हैं। अर्थशास्त्र की यह विचारधारा भी द्वितीय महायुद्ध के बाद उभरी है और इसका भी नित नवीन विस्तार हो रहा है। इसी के अंतर्गत योजनाकरण (प्लानिंग), पूंजी निर्माण तथा विदेशी सहायता जैसी वर्तमान अंतराष्ट्रीय समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।अर्थशास्त्र की उपादेयताअर्थशास्त्र का महत्व बड़ी तीव्र गति से बढता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ एफाके की रिपोर्ट, (1970) ई. के अनुसार अर्थशास्त्र पर लगभग 1,000 ग्रंथ या लेख प्रति घंटे विश्व में प्रकाशित हो रहे हैं। राजनीति के बाद लोकप्रियता में अर्थशास्त्र का ही स्थान हैं। वस्तुत: अर्थशास्त्र का प्रयोग कल्याण के हेतु करना ही पड़ेगा अन्यथा केवल भौतिक साधन जुटाने का लक्ष्य रखकर एक दिन यह सबको ले डूबेगा। संतोष की बात है कि अब अर्थशास्त्री इस बात को समझने लगे हैं। भारत का प्राचीन दर्शन इस तथ्य को प्रारंभ से जानता है कि केवल भौतिक साधनों का बाहुल्य ही मनुष्य को सुखी नहीं कर सकता। प्रो॰ शुंपीटर ने अपने नवीनतम लेख अर्थशास्त्र का भविष्य में स्वीकार किया है कि सिद्धांत रूप से आर्थिक विश्लेषण चाहे जितनी प्रगति कर ले, व्यवहार में उसे हमेशा शांति, सुख एवं कल्याण के हेतु ही कार्य करना होगा। यदि अर्थशास्त्र समस्त मानव के समान कल्याण के हेतु कार्य कर सके तो इसका भविष्य बहुत उज्वल होगा। इसी कारण अब अर्थशास्त्र पर नोबेल पुरस्कार भी दिया जाने लगा है।
अर्थशास्त्र की सीमाएं  अर्थशास्त्र की मुख्य सीमायें (Limitations) निम्नलिखित हैं-
         आर्थिक नियम कम निश्चित होते है।  अर्थशास्त्र विज्ञान तथा कला दोनों है। अर्थशास्त्र केवल मानवीय क्रियाओं का अध्ययन करता है। सामाजिक मनुष्य का अध्ययन वास्तविक मनुष्य का अध्ययन आर्थिक क्रियाओं का अध्ययनसामान्य मुनष्य का अध्ययन कानूनी सीमा के अन्तर्गत आने वाले व्यक्तियों का अध्ययन दुर्लभ पदार्थो का अध्ययन आदि अर्थशास्त्र की प्रमुख सीमाएं हैं. 
                                 ( Mahendra Seera's Android app, "Economics Hindi- अर्थशास्त्र" से साभार )

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