Wednesday, 31 October 2018

राजकीय इंटर कालेज जाखणीधार में राष्ट्रीय एकता दिवस पर अनेक प्रतियोगिताओं का आयोजन

 प्रवक्ता अर्थशास्त्र सुशील डोभाल द्वारा प्रस्तुत आख्या

   भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्ल्भ भाई पटेल के जन्मदिन के उपलक्ष में राजकीय इंटर कालेज जाखणीधार में राष्ट्रीय एकता दिवस का आयोजन हर्षोल्लास के साथ किया गया. राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए भारत ही नहीं दुनियाभर में अपना लोहा मनवाने वाले सरदार पटेल के योगदान को याद करते हुए एकता और अखंडता का संकल्प लिया गया. इस अवसर पर विद्यालय में भाषण, निवंध, स्लोगन तथा पोस्टर प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया.
एकता और अखंडता के लिए पतिज्ञा
      प्रधानाचार्य श्री महावीर सिंह परमार ने विद्यार्थियों को बताया की भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने की वजह से सरदार पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक अत्‍यंत गौरवपूर्ण स्थान पाया।  उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए गुजरात में नर्मदा नदी के सरदार सरोवर बांध के सामने सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची लौह प्रतिमा का निर्माण किया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी सरदार पटेल की 137वीं जयंती पर इस प्रतिमा को आज राष्ट्र को स‍मर्पित कर रहे हैं। यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी। इस प्रतिमा का नाम एकता की मूर्ति (स्टेच्यू ऑफ यूनिटी) रखा गया है।
निवन्ध प्रतियोगिता
      राजकीय इंटर कॉलेज जाख्निधार में राष्ट्रीय एकता दिवस के अवसर पर आज विद्यालय में भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्ल्भ भाई पटेल के योगदान को याद करते हुए समस्त शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्र-छात्राओं द्वारा राष्ट्रीय एकता के शपथ लेते हुए सरदार पटेल के आदर्शों का अनुसरण करने का आवाहन किया गया. कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रधानाचार्य द्वारा दीप प्रज्वातित एवं छात्राओं द्वारा मां शारदे की वन्दना से हुआ. समस्त शिक्षकों व सदन प्रमुख छात्र-छात्राओं द्वारा सरदार पटेल को श्रधांजली अर्पित की गयी. इस अवसर पर समस्त शिक्षकों कर्मचारियों एवं छात्रों द्वारा राष्ट्रीय एकता की शपथ भी ली गयी.
एकताके लिए प्रतिज्ञा
कार्यक्रम का संचालन करते हुए वरिष्ट शिक्षक एवं राजकीय शिक्षक संघ के ब्लाक अध्यक्ष श्री दिनेश प्रसाद डंगवाल ने कहा की भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिए उन्हे भारत का 'लौहपुरुष' के रूप में जाना जाता है। सरदार पटेल की महानतम देन थी की उन्होंने बिना खून खराबे के 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण किया. केवल हैदराबाद के 'ऑपरेशन पोलो' के लिए उन्हें सेना भेजनी पड़ी। इस अवसर पर विधालय के शिक्षक श्री राजेश कुमार उपाध्याय, कक्षा १२ की छात्रा कुमारी किरण अमोला, बबिता, मोनिका, विजय और प्रिया पालीवाल आदि ने भी सरदार वल्ल्भ भाई पटेल के योगदान पर भाषण प्रस्तुत किये तथा निवंध, स्लोगन तथा चित्रकला आदि की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की गयी.
मंचासीन शिक्षक व अतिथिगण


आइए जानते हैं सरदार वल्लभ भाई पटेल के बारे में 10 बातें-
1. सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ। वे खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई और लाडबा पटेल की चौथी संतान थे। 1897 में 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। वल्लभ भाई की शादी झबेरबा से हुई। पटेल जब सिर्फ 33 साल के थे, तब उनकी पत्नी का निधन हो गया।


2. सरदार पटेल अन्याय नहीं सहन कर पाते थे। अन्याय का विरोध करने की शुरुआत उन्होंने स्कूली दिनों से ही कर दी थी। नडियाद में उनके स्‍कूल के अध्यापक पुस्तकों का व्यापार करते थे और छात्रों को बाध्य करते थे कि पुस्तकें बाहर से न खरीदकर उन्हीं से खरीदें। वल्लभभाई ने इसका विरोध किया और छात्रों को अध्यापकों से पुस्तकें न खरीदने के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप अध्यापकों और विद्यार्थियों में संघर्ष छिड़ गया। 5-6 दिन स्‍कूल बंद रहा। अंत में जीत सरदार की हुई। अध्यापकों की ओर से पुस्तकें बेचने की प्रथा बंद हुई।
3. सरदार पटेल को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने में काफी समय लगा। उन्होंने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की। सरदार पटेल का सपना वकील बनने का था और अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्हें इंग्लैंड जाना था, लेकि‍न उनके पास इतने भी आर्थिक साधन नहीं थे कि वे एक भारतीय महाविद्यालय में प्रवेश ले सकें। उन दिनों एक उम्मीदवार व्यक्तिगत रूप से पढ़ाई कर वकालत की परीक्षा में बैठ सकते थे। ऐसे में सरदार पटेल ने अपने एक परिचित वकील से पुस्तकें उधार लीं और घर पर पढ़ाई शुरू कर दी।
4. बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहां की महिलाओं ने 'सरदार' की उपाधि प्रदान की। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को 'भारत का बिस्मार्क' और 'लौहपुरुष' भी कहा जाता है। सरदार पटेल वर्णभेद तथा वर्गभेद के कट्टर विरोधी थे।

5. इंग्‍लैंड में वकालत पढ़ने के बाद भी उनका रुख पैसा कमाने की तरफ नहीं था। सरदार पटेल 1913 में भारत लौटे और अहमदाबाद में अपनी वकालत शुरू की। जल्द ही वे लोकप्रिय हो गए। अपने मित्रों के कहने पर पटेल ने 1917 में अहमदाबाद के सैनिटेशन कमिश्नर का चुनाव लड़ा और उसमें उन्हें जीत भी हासिल हुई।
6. सरदार पटेल गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता से काफी प्रभावित थे। 1918 में गुजरात के खेड़ा खंड में सूखा पड़ा। किसानों ने करों से राहत की मांग की, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मना कर दिया। गांधीजी ने किसानों का मुद्दा उठाया, पर वो अपना पूरा समय खेड़ा में अर्पित नहीं कर सकते थे इसलिए एक ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहे थे, जो उनकी अनुपस्थिति में इस संघर्ष की अगुवाई कर सके। इस समय सरदार पटेल स्वेच्छा से आगे आए और संघर्ष का नेतृत्व किया।

7. गृहमंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इस काम को उन्होंने बिना खून बहाए करके दिखाया। केवल हैदराबाद के 'ऑपरेशन पोलो' के लिए उन्हें सेना भेजनी पड़ी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिए उन्हे भारत का 'लौहपुरुष' के रूप में जाना जाता है। सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी।
8. सरदार वल्लभभाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री होते। वे महात्मा गांधी की इच्छा का सम्मान करते हुए इस पद से पीछे हट गए और नेहरूजी देश के पहले प्रधानमंत्री बने। देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उपप्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। सरदार पटेल के निधन के 41 वर्ष बाद 1991 में भारत के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान भारतरत्न से उन्‍हें नवाजा गया। यह अवॉर्ड उनके पौत्र विपिनभाई पटेल ने स्वीकार किया।
9. सरदार पटेल के पास खुद का मकान भी नहीं था। वे अहमदाबाद में किराए एक मकान में रहते थे। 15 दिसंबर 1950 में मुंबई में जब उनका निधन हुआ, तब उनके बैंक खाते में सिर्फ 260 रुपए मौजूद थे।

10. आजादी से पहले जूनागढ़ रियासत के नवाब ने 1947 में पाकिस्तान के साथ जाने का फैसला किया था लेकिन भारत ने उनका फैसला स्वीकार करने से इंकार करके उसे भारत में मिला लिया। भारत के तत्कालीन उपप्रधानमंत्री सरदार पटेल 12 नवंबर 1947 को जूनागढ़ पहुंचे। उन्होंने भारतीय सेना को इस क्षेत्र में स्थिरता बहाल करने के निर्देश दिए और साथ ही सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का आदेश दिया।

जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ़ तथा हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ़ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया, तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया, किंतु कश्मीर पर यथास्थिति रखते हुए इस मामले को अपने पास रख लिया। 

साभार- https://hindi.webdunia.com/national-hindi-news

2 comments:

  1. बहुत बढिया रिपोर्ट डोभाल जी।
    पंकज डंगवाल

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  2. धन्यवाद डंगवाल जी.

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