कहा जाता है कि करीब तीन सौ वर्ष पूर्व इस पर्वत के शिखर पर एक नेपाली महिला की साधना से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उसे दर्शन दिए थे। अब यहां पर प्राचीन शिवालय के स्थान पर स्थानीय ग्रामीणों ने भव्य शिवालय का निर्माण कर दिया है। स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार इस पर्वत शिखर पर स्थित शिवालय से मध्यरात्रि में ढोल दमाऊ की आवाजों सहित अनेक आलोकित गतिविधियां होती है। देवभूमि उत्तराखंड में ऐसे दिव्य स्थानों की कोई कमी नही है किंतु रैसाड़ देवता के इस गुमनाम मंदिर के बारे अधिकतर लोग आज भी अनजान ही है।
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