Tuesday, 16 April 2019

" परीक्षा और मूल्यांकन" की पद्धति में अभी सुधार बाकी हैं।

     हमने सफलता के साथ कई वर्षों से परीक्षा प्रणाली का इस्तेमाल विद्यार्थियों की प्रगति को मापने के लिए किया है। यह प्रणाली न सिर्फ हमारी उत्सुकता को शांत करने के लिए हमें जरूरी सूचनाएं उपलब्ध कराती रही है, बल्कि एक बहुत बड़े उद्योग का आधार भी है। इसके अलावा परीक्षा में प्रदर्शन अक्सर एक अच्छे स्कूल और अच्छी शिक्षा तथा जीवन में सफलता और विफलता के विचार से जोड़ दिया जाता है। यही वजह है कि हमारे शिक्षा दस्तावेजों में शिक्षा के व्यापक एवं उत्कृष्ट उद्देश्य दर्ज थे, जबकि वास्तव में हम इन लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में कमजोर और अक्सर गलत व हानिकारक तरीके से आगे बढ़ रहे थे।
     इसलिए जब आरटीई अधिनियम का मसौदा तैयार किया गया तो मूल्यांकन का मामला इसके केंद्र में था। अधिनियम ने इसे सतत और व्यापक मूल्यांकन या सीसीई के रूप में स्थान दिया। शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने के लिए संघर्ष से पहले ही इस प्रकार की आवाजें सुनाई देती थीं कि हम कैसे एक ऐसी मूल्यांकन प्रणाली के साथ जा सकते हैं जो न्यायपूर्ण हो तथा जो सिर्फ अंकों के आधार पर लिए गए निर्णय पर भरोसा न करती है. इस प्रणाली की एक सीमा यह भी है कि यह बच्चे को संपूर्णता में नहीं देखती है। यह परीक्षा या टेस्ट के माध्यम से बच्चों के स्मरण शक्ति का मापन करती है, जबकि एक बच्चे का व्यक्तित्व मात्र कुछ प्रश्नों के मानक उत्तरों या फिर पढ़ाए गए तथ्यों को लिख देने मात्र से कहीं अधिक होता है। इसलिए सतत और व्यापक मूल्यांकन प्रणाली का प्रयोग किया गया है। यह सोचा गया था कि आकलन की यह प्रणाली विद्यालय में बच्चे के प्रदर्शन को मापने के बेहतर तरीके प्रस्तुत करती है। 
      एनसीएफ-2005 का तर्क है कि पुरानी मूल्यांकन व्यवस्था को जितनी जल्दी हो सके, शिक्षा व्यवस्था से दूर कर दी जाए। इस संदर्भ में शिक्षा अधिनियम ने साहस के साथ इन चिंताओं पर विचार किया है और कक्षा 8 तक परीक्षा लेने और फेल करने पर रोक लगा दी है। इसके साथ शैक्षिक सत्र 2010-11 से सतत और व्यापक मूल्यांकन प्रणाली को कक्षा 1 से 8 में लागू करने की बात भी की है। वर्तमान में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने सीसीई प्रणाली को लागू कर दिया है। देश में सीसीई और फेल न करने की नीति पर काफी बहस हो रही है। जहां सीसीई के समर्थक इसके पक्ष में ऊपर दिए गए कारणों को प्रस्तुत करते हैं, वहीं शिक्षक समुदाय, नौकरशाही और यहां तक कि माता-पिता भी, इसका जबरदस्त विरोध करते हैं। यह तर्क दिया जाता है कि सीसीई और फेल न करने की नीति की वजह से बच्चों के सीखने की क्षमता में तीव्र गिरावट आई है। हालांकि अभी तक इसे साबित नहीं किया जा सका है। ऐसे माहौल के कारण फेल न करने की नीति और सीसीई के खिलाफ काफी आवाजें उठ रही हैं। यूनिसेफ ने 2014 में सीसीई प्रणाली की जमीनी हकीकत को समझने के लिए छह राज्यों-बिहार, गुजरात, महाराष्टï्र, ओडिशा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में एक अध्ययन शुरू किया। यूनिसेफ द्वारा यह अध्ययन सीसीई की वर्तमान वास्तविकता को समझने का पहला व्यापक प्रयास है।
     सीसीई के तहत छात्रों की प्रगति के सह-शैक्षिक आयामों के आकलन को भी स्थान दिया गया है। यह उत्साहजनक प्रगति है, हालांकि यह अभी तो एक शुरुआत मात्र है। राज्यों से यह रिपोर्ट प्राप्त हो रही है कि कक्षा का वातावरण छात्रों के लिए कम तनावपूर्ण एवं डरावना हुआ है। वहीं इसके दूसरे पहलू के रूप में यूनिसेफ का अध्ययन पाता है कि सीसीई को सही तरीके से लागू करने के लिए आवश्यक माहौल और सुविधाओं का अभाव है। परंपरागत शिक्षक संचालित शिक्षण प्रक्रिया सीसीई के लिए अनुकूल नहीं है। इसके अलावा मूल्यांकन में सततता भी कम परिलक्षित होती है। तथाकथित रचनात्मक आकलन या शिक्षण के दौरान मूल्यांकन भी यांत्रिक तरीके से की जा रही है। शिक्षक इसका इस्तेमाल बच्चों की प्रतिक्रिया प्राप्त करने हेतु एक उपकरण के रूप में करने की बजाय इसे किसी प्रक्रिया की तरह पूरा किए जाने पर जोर देते हैं. मूल्यांकन की किसी भी प्रणाली का उद्देश्य आकलन के द्वारा छात्रों को फीडबैक प्रदान करना तथा उनके सीख स्तर में सुधार करना होता है। फीडबैक प्रदान करना तथा आवश्यकतानुसार सुधारात्मक कार्रवाई वर्तमान सीसीई प्रणाली से गायब है। इस बीच फेल करने तथा परीक्षा के लिए आवाजें उठानी शुरू हो गई हैं। कई राज्यों में सीसीई की रूपरेखा इस प्रकार से बनाई गई है जो पूर्व में प्रचलित परीक्षा आधारित मूल्यांकन प्रणाली में फिट बैठती है। इन दोनों घटनाक्रम में शैक्षणिक सुधारों को कमजोर करने की क्षमता है जिसका प्रतिरोध होना चाहिए। सीसीई को हटाने की मांग के बीच हमें विभिन्न स्तरों पर एक सतत संवाद की प्रक्रिया शुरू करनी होगी। सीसीई के सही अर्थ एवं भावना को सार्थक तथा प्रभावी तरीके से शिक्षा व्यवस्था के सभी हितधारकों तक पहुंचाना आवश्यक है ताकि बाल केंद्रित अधिगम प्रक्रिया को सुनिश्चित किया जा सके। यूनिसेफ अध्ययन कई सिफारिशें भी प्रस्तुत करता है जिनमें शिक्षा व्यवस्था के विभिन्न स्तरों पर सीसीई और सीसीई क्रियान्वित कक्षाओं के बारे में स्पष्टता और साझा समझ की आवश्यकता सर्वप्रथम है। इसमें बच्चों की शिक्षा के दोनों आयामों- शैक्षिक और सहशैक्षिक के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता शामिल है। सीसीई को सही अर्थों में लागू करने के लिए शिक्षक की तैयारी और शिक्षण प्रक्रिया दोनों को पूरी तरह से सशक्त बनाने की आवश्यकता है। वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए सुनियोजित और चरणबद्ध तरीके से काम करना होगा। सीसीई को अलगाव में या दूसरी विधि या शिक्षण की तकनीक के रूप में नहीं देखा जा सकता। यह प्रभावी शिक्षण प्रक्रिया का मूल सिद्धांत है। सीसीई होने के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षक को बच्चों की आवश्यकताओं की सतत और व्यापक समझ हो।
      सीसीई को वर्तमान प्रक्रियात्मक, सूत्रबद्ध, सुरक्षित और दूसरों को दिखाने हेतु तथा आरटीई अधिनियम की जरूरतों को पूरा करने वाले प्रणाली के चोले से बाहर निकालने की जरूरत है। जरूरत इस बात की है कि छात्र केंद्रित सक्रिय शिक्षण अधिगम प्रक्रिया पर व्यापक दृष्टिकोण का विकास किया जाए, जिसमें मूल्यांकन को सीखने में सुधार लाने की आवश्यक प्रक्रिया के रूप में देखा जाए। इसमें शिक्षक की अहम भूमिका है।विद्यालयों में बेहतर मूल्यांकन प्रक्रिया, फीडबैक और सुधारात्मक प्रक्रिया का प्रदर्शन शिक्षकों के समक्ष करना चाहिए। पूरी शिक्षा व्यवस्था में यह समझ विकसित हो कि उनकी जवाबदेही बच्चों की प्रगति के लिए है। शैक्षिक प्राधिकारियों को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में आमूल-चूल परिवर्तन तथा इसमें आकलन प्रक्रिया की महत्वपूर्ण भूमिका पर विश्वास करना ही होगा।

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