Monday 11 February 2019

बंबई रक्त समूह रक्त का एक अनूठा प्रकार है। इस रक्त समूहकी खोज सबसे पहले बंबई (अब मुंबई) में १९५२ में डा.वाई एम भेंडे द्वारा की गई थी इसलिए इस रक्त समूह का नाम बंबई रक्त समूह पड़ा| इस रक्त समूह को hh और oh रक्त समूह भी कहते है| इस रक्त समूह में h प्रतिजन खुद को अभिव्यक्त नही कर पाता जो की O रक्त समूह में होता है| इसके कारण ही यह रक्त समूह अपनी लाल रक्त कोशिकओं में A और B प्रतिजन नही बनाता| A और B प्रतिजन न बनाने के कारण ही इस रक्त समूह के लोग किसी भी रक्त समूह के लोगो को अपना रक्त दे तो सकते है पर किसी और रक्त समूह से रक्त ले नही सकते|[1]
बंबई रक्त समूह उन लोगो में पाया जाता है जिन्हें विरासत में २ प्रतिसारी एलील मिलते है H अनुवांश के| इस रक्त समूह के मनुष्य H कार्बोहायड्रेट नही बना पाते जो की A और B प्रतिजन के अग्रगामी है| इसका यह मतलब है की इस रक्त समूह में A और B प्रतिजन के एलील मौजूद तो है पर वह खुद को अभिव्यक्त नहीं कर पाते। यह रक्त समुह उन बच्चों में देखने को मिलता है, जिन्हें वंश परम्परा से दोनों ही एलील ऐसे मिले जो की प्रतिसारी हो। [2]


रेयर ऑफ द रेयरेस्ट ब्लड ग्रुप है बॉम्बे ब्लड टाइप
यह रेयरेस्ट ऑफ रेयर ब्लड टाइप दुनिया भर की पूरी जनसंख्या में से सिर्फ 0.0004 फीसदी लोगों के भीतर होता है. इसे सबसे पहले साल 1952 में डॉक्टर वाई जी भिड़े ने खोजा था. ब्लड टाइप के भीतर पाए जाने वाले फेनोटाइप रिएक्शन के बाद पता चला कि इसके भीतर एक एंटीजेन - एच (H) पाया जाता है. यह इससे पहले कभी नहीं देखा गया था. यह खुद में रेयर मामला था. चूंकि इसे दुनिया में सबसे पहले बॉम्बे के भीतर पाया गया था इसलिए इसका नाम बॉम्बे ब्लड टाइप पड़ गया.
यह ग्रुप दानकर्ता तो हो सकता है मगर दान लेने में हैं दिक्कतें...
इस ग्रुप के शख्स किसी भी ABO फेनोटाइप रिम में आने वाले सदस्य को रक्त दे सकते हैं, लेकिन उनके लिए रक्त लेना संभव नहीं. वे सिर्फ अपने ग्रुप के सदस्यों का ही रक्त ले सकते हैं.
यह ब्लड ग्रुप सिर्फ नजदीकी ग्रुप में मिलता है...
यह ब्लड टाइप करीबी ब्लड रिलेशन वाले लोगों में पाया जाता है. अगर अकेले मुंबई के आंकड़ों को देखें तो बॉम्बे फेनोटाइपरखने वाले सदस्यों की तादाद महज 0.01 फीसदी होगी. यदि दोनों माता-पिता Recessive allele धारक हैं तो ऐसी संभावना होती है कि बच्चे का h/h ब्लड ग्रुप होगा. बिल्कुल ही गुत्थमगुत्था परिवार या फिर इनब्रीडिंग की वजह से इस रक्तसमूह की पैदाइश होती है.

बॉम्बे ब्लड ग्रुप’ हजारों लोगों में से किसी एक में पाया जाता है. हाल ही में मुंबई में 28 साल की पुष्पा की मौत इस ब्लड ग्रुप का रक्त न मिलने के कारण हो गई. देखने में पुष्पा अन्य महिलाओं की तरह ही सामान्य थी, लेकिन उसका खून बिलकुल अलग था, और यही उसकी जिंदगी के लिए खतरा बन गया। दरअसल, पुष्पा का रक्त ‘बॉम्बे ब्लड ग्रुप’ यानी ‘एचएच’ ग्रुप था। इस ग्रुप का रक्त आसानी से नहीं मिलता।

बॉम्बे ब्लड ग्रुप (एचएच) की खोज 1952 में मुंबई के एक हॉस्पिटल में डॉ. वाई.एम. भेंडे ने की थी। पहली बार बॉम्बे में पाए जाने के कारण इसका नाम ही बॉम्बे ब्लड ग्रुप रख दिया गया। भारत में 10 हजार लोगों में से एक में यह ब्लड ग्रुप पाया जाता है, जबकि यूरोप में 10 लाख लोगों में से एक व्यक्ति में यह ब्लड ग्रुप मिलता है। किसी व्यक्ति का रक्त इस ग्रुप के होने का तभी पता चल पाता है जब उसे खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है।

बॉम्बे ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति में एच एंटीजन नहीं होता। एच एंटीजन को मदर एंटीजन भी कहा जाता है, और इसके न होने पर लाल रक्त कण कोई ग्रुप (ए, बी या ओ) नहीं बनाता। आमतौर पर ब्लड टेस्टिग में ऐसे व्यक्ति का ‘ओ’ ग्रुप ही पता चलता है, लेकिन जब रिवर्स टेस्टिंग की जाती है तो पता चलता है कि यह बॉम्बे ब्लड ग्रुप है।




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