समग्र शिक्षा अभियान के एक भारत श्रेष्ठ भारत एवं राष्ट्रीय आविष्कार अभियान कार्यक्रम के अंतर्गत उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के 30 छात्र-छात्राओं के दल ने दिल्ली के विभिन्न पर्यटक स्थलों का शैक्षिक भ्रमण कर वहां के स्थानीय परिवेश को समझने का प्रयास किया।इस भ्रमण में दल के बच्चों ने अनेक ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण करके अनेक महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की।
भ्रमण का दिनांक:- 23 मार्च 2019 से 27 मार्च 2019
भ्रमण के लिए चयनित स्थान:- लाल किला, राजघाट, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, इंडिया गेट, नेहरु प्लेंटेरियम, नेशनल साइंस सेंटर, जंतर-मंतर, बिरला मन्दिर ।
शैक्षिक भ्रमण दल के सदस्यों का विवरण
क्रम स०
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छात्र-छात्राओ की स०
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विधालय का नाम
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विकासखंड
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1
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14
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रा०उ०प्रा० वि० पड़िया (कन्या)
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प्रतापनगर
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2
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13
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रा०उ०प्रा० वि०भौनाबागी
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चंबा
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राष्ट्रीय अविष्कार अभियान के अंतर्गत
क्रम स०
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छात्र-छात्राओ की स०
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विधालय का नाम
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विकासखंड
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1
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02
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रा०उ०प्रा० वि०भौनाबागी
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चंबा
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2
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01
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रा०उ०प्रा० वि०झिंवाली
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प्रतापनार
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एस्कार्ट शिक्षको की सूची
क्रम स०
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शिक्षक का नाम
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विद्यालय का नाम
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विकासखंड
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1
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सुनील डबराल
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रा०उ०प्रा० वि०भौनाबागी
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चंबा
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2
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श्रीमती मीनाक्षी सिलस्वाल
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रा०उ०प्रा० वि० पड़िया (कन्या)
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प्रतापनगर
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3
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गोपाल कृष्ण उनियाल
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रा० अ० उ० प्रा० वि० कन्थेर गाँव
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चंबा
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प्रथम दिवस:-जिला परियोजना कार्यालय के आदेशानुसार 23 मार्च 2019 को सभी छात्र-छात्राएं नई टिहरी में प्रातः 8:30 बजे एकत्र हुए जहां जिला शिक्षा अधिकारी (बेसिक) श्री सुदर्शन सिंह बिष्ट, जिला समन्वयक श्री जी.पी.सिलस्वाल एवं डायट प्रवक्ता श्री डंगवाल उपस्थित थे। जिला शिक्षा अधिकारी ने आवश्यक दिशानिर्देश देने के उपरांत दल को शुभकामनाओं के साथ बस से दिल्ली के लिए रवाना किया।
चंबा में जलपान करने के उपरांत बस ऋषिकेश के लिए रवाना हुई तथा ऋषिकेश में थोड़ा विश्राम करने के बाद बच्चों को दोपहर का भोजन करवाया गया। भोजन के पश्चात बस आगे के लिए रवाना हुई। ऋषिकेश से आगे के सफर में बच्चों ने बैराज, हर की पैड़ी, मनसा देवी,चंडी देवी तथा गंग नहर को देखा तथा उनके बारे में अपने एस्कॉर्ट अध्यापकों से जानकारी ली। सफर में आगे बढ़ते हुए गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, पतंजलि योगपीठ आदि को देखा। बच्चों ने रास्ते में ईट पकाने की भट्टी को देखा तथा लाल ईट कैसे बनाई जाती है इसकी जानकारी अपने अध्यापकों से ली। रास्ते में कहीं सारे कारखाने, इमारतें, पुराने तथा नए भवन आदि देखकर वे बहुत रोमांचित हुए। बच्चो ने आपस मे कारखानों से निकलने वाले धुंए से होने वाले वायु प्रदूषण पर चर्चा की।
इस तरह से सफर आगे बढ़ता गया और सांय 7:00 बजे बस ने दिल्ली की सीमा में प्रवेश किया। दिल्ली में पहुंचते ही बच्चों को बड़ी-बड़ी बहुमंजिला इमारतें, मेट्रो, राष्ट्रध्वज के 3 रंगों की लाइट ने बहुत आकर्षित किया तथा वे दिल्ली घूमने की कल्पना को साकार होता देखकर बहुत खुश नजर आए परंतु साथ में इतने लंबे सफर की थकावट उनके चेहरों में स्पष्ट दिख रही थी। सांय 7:50 पर बस पहाड़गंज में स्थित साईं महल इंटरनेशनल होटल में पहुंची तथा वहां पहुंचकर सभी बच्चे अपने-अपने कमरों में अपने सामान को ले गए तथा विश्राम करने लगे।
द्वितीय दिवस:- अगले दिन सुबह 8:00बजे तैयार होकर सबने नाश्ता किया और ठीक 9:00 बजे बस में बैठ के सबसे पहले तय कार्यक्रम के अनुसार लाल किला पहुंचे। किले के बाहर चांदनी चौक के बाजार में लोगों की भीड़ को देख कर बच्चे आश्चर्यचकित रह गए। उस दिन रविवार था और वहां पर पटरी बाजार लगा हुआ था। इतने ज्यादा लोगो को एक साथ इतनी सुबह-सुबह खरीदारी करते हुए देखना उनके लिए नया अनुभव था।
लाल किला :- लाल किले के गेट के अंदर प्रवेश करने के बाद लाल किले की प्राचीर को देखने के पश्चात् बच्चे कहने लगे कि इतना बड़ा लाल किला फोटो में कितना छोटा सा दिखता है। मार्गदर्शक अध्यापक गोपाल कृष्ण जी ने बच्चों को लाल किला के इतिहास के बारे में बताया,उन्होंने बताया लाल किला को मुग़ल शासक शाहजांह ने 1648 में बनवा था, यह लाल बलुआ मिट्टी से बना है इसलिए इसका नाम लाल किला पड़ा। यह मुगलकालीन कला का एक बेहतरीन नमूना है।
लाल किला के अंदर प्रवेश करते ही सबसे पहले एक बाजार आया जिसका नाम मीना बाजार था। जहां बच्चो ने दुकानों में सजे हुए सामान को देखा। मीना बाजार से आगे बढ़ने पर दीवाने आम आया, उसके बाद रंग महल, नहर ए बहिस्त, कैदखाना और फिर दीवाने खास देखा। गोपाल कृष्ण जी ने बच्चो को बताया लाल किला को यूनेस्को द्वारा 2007 में विश्व धरोहर के रूप में चयनित किया गया था। बच्चो को उन्होंने दीवाने आम, दीवाने खास, शाही बगीचे, रंग महल, नहर ए बहिश्त आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी। बच्चे लाल किले की नक्काशी को देख कर सोचने लगे इसको बनाने वालों की कला कितनी सुंदर थी ओर इसको बनाने में कितना समय लगा होगा आदि, फिर उससे संबंधित अनेक प्रश्न उन्होंने अपने अध्यापको से किये।
राजघाट:- लाल किला के बाद अगला पड़ाव राजघाट था। राजघाट पहुंचने पर बच्चे वहां की पुष्पों की वाटिका को देख कर तथा हरे घास के मैदानों को देख कर खुश हुए। मार्गदर्शक अध्यापक सुनील डबराल जी ने बच्चो को बताया कि इस स्थान में गांघी जी का अंतिम संस्कार किया गया था। इसके बाद राजघाट में महात्मा गांधी की समाधि के आगे सबने प्रणाम किया, राजघाट की शांति में उन्हें भी आनंद आया और वहां के निर्देशों का पालन करते हुए बच्चे भी वहां शांति के साथ विचरण करते रहे फिर राजघाट में बैठकर बच्चों ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी जी के योगदान के बारे में आपस में चर्चा की और मार्गदर्शक अध्यापकों से जानकारी एकत्र की। राजघाट में घूमने के बाद बच्चों ने दोपहर का भोजन किया।
इंडिया गेट:- दोपहर के भोजन के बाद बस बच्चों को लेकर इंडिया गेट की तरफ बढ़ी। मार्गदर्शक अध्यापक सुनील डबराल ने बच्चों को इंडिया गेट के इतिहास के बारे में बताया और उन्हें बताया की यह गेट 43 मीटर ऊंचा है यह भारत के राष्ट्रीय स्मारकों में सम्मिलित है, इसका पुराना नाम किंग्सवे था। इंडिया गेट को सन् 1931 में बनाया गया इंडिया गेट का निर्माण प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए सैनिको की याद में करवाया गया था। इसके बाद इंडिया गेट के पीछे बच्चों ने अमर जवान ज्योति को देखा और और वहां पर तीनों सेना के ध्वज को भी देखा तथा उनके रंगों से उनकी पहचान की। अमर जवान ज्योति में सीधे खड़े हुए सैनिको को देख कर बच्चे बड़े अचंभे में पड़ गए क्योकि उन्हें लगा वो सैनिको की मूर्ति है परन्तु जब वहां पे दूसरा सैनिक आया तो उन्हें पता चला ये मूर्ति नहीं है।
राष्ट्रपति भवन:- इसके बाद दल राष्ट्रपति भवन की ओर चला तथा राष्ट्रपति भवन तक की यात्रा पैदल ही तय करी। राष्ट्रपति भवन को देख कर बच्चे राष्ट्रपति से मिलने के लिए लालायित होने लगे और कहने लगे कि उन्हें भी अंदर जाकर राष्ट्रपति से मिलवाया जाए । इसपर श्रीमती मीनाक्षी सिलस्वाल ने उन्हें बताया कि इसके लिए अनुमति लेनी पड़ती है और अनुमति इतनी जल्दी नहीं मिल पाती है। राष्ट्रपति भवन को देखने के बाद बच्चों ने संसद भवन को देखा और राष्ट्रपति भवन के सामने हरी घास के मैदान में बैठ कर संसद भवन के बारे में आपस में चर्चा करी।
इस प्रकार दूसरे दिवस के भ्रमण के बाद सांय 7:00 बजे तक बच्चे और मार्गदर्शक अध्यापक होटल वापस आ गए और सबने तय किया कि रात्रि भोजन से पहले एक जगह पर एकत्र होकर दिनभर की यात्रा के बारे में आपस में चर्चा करेंगे। इसी के साथ मीनाक्षी सिलस्वाल ने सबको बताया कि इस चर्चा में शामिल होने के लिए TEACH FOR INDIA की FELLOW कुमारी श्रुतिका सिलस्वाल भी आ रही है तथा वह इन स्थानों के इतिहास और महत्व के बारे में बच्चों को और विस्तृत रूप से समझाएगी।
इसके बाद सांय 8:00 बजे श्रुतिका के पहुंचने के बाद सभी बच्चे होटल की छत में एकत्र हुए और वहां उन्होंने अपने दिनभर के भ्रमण के बारे में श्रुतिका को बताया तथा श्रुतिका ने फिर उनसे लाल किला के बारे में अनेक प्रश्न किये तथा लाल किला के इतिहास के बारे में विस्तार से बताया तथा शाहजहापुरी की स्थापना, दिल्ली के चार गेट कश्मीरी गेट, तुगलक गेट, लाहोरी गेट और अजमेरी गेट की विशेषताओ के बारे में समझाया। इसके बाद राजघाट की शांति के बारे में बच्चो से विस्तार से चर्चा की तथा उन्हें शांति के मायने समझाए, फिर इंडिया गेट और राष्ट्रपति भवन के बारे में भी बच्चो के प्रश्नों को अपनी वार्तालाप से शांत किया। इसके बाद श्रुतिका के द्वारा बच्चो के लिए लाये हुए केक को काटा गया और सभी ने केक खाया ।फिर रात्रि भोजन के बाद सब सोने चले गए।
तृतीय दिवस:-तीसरे दिन प्रात: नाश्ते के बाद 9:00 बजे सुबह सब बस में बैठ गए। आज के भ्रमण की शुरुआत बिरला मंदिर से की गयी।
बिरला मंदिर:- लक्ष्मी नारायण मंदिर को बिरला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है यह दिल्ली के प्रमुख मंदिरों में से एक है मार्गदर्शक अध्यापक मीनाक्षी सिलस्वाल ने बच्चो को बताया कि यह मंदिर भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति श्री जी. डी. बिरला ने 1938 में बनवाया था तथा इसका उद्घाटन महात्मा गाँधी ने इस शर्त के साथ किया था इसमें सभी जाति के लोगो को प्रवेश करने दिया जायेगा। बच्चो ने भगवान लक्ष्मी नारायण के दर्शन किये तथा शिवालय में पंचमुखी शिवलिंग के दर्शन किये बच्चे मंदिर की भव्यता को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए तथा उसकी तुलना अपने आसपास के मंदिरों के आकारों से करने लगे बिरला मंदिर में बच्चो ने सड़क पार Subway से करी तथा भूमिगत पथ को देखा और उसकी उपयोगिता को समझा।
जंतर-मंतर:- बिरला मंदिर के देखने के बाद बस दल को लेकर जंतर-मंतर पहुंची, जंतर-मंतर एक खगोलीय वेधशाला है जिसका निर्माण महाराजा जयसिंह द्वतीय ने 1724 में करवाया था ग्रहों की गति को नापने के लिए यहाँ विभिन प्रकार के उपकरण लगाये गए है जिनमे सम्राट यंत्र, राम यंत्र, मिश्र यंत्र, और जयप्रकाश यंत्र है। जंतर-मंतर में वैदिक घड़ियों से समय कैसे देखा जाता था इस पर मीनाक्षी सिलस्वाल तथा सुनील डबराल जी ने बच्चों को समझाया तथा उनकी कक्षा-7 की विज्ञान की पुस्तक में दी गयी धूप घड़ी की तरफ उनका ध्यान आकर्षित किया तथा उन्हें उसमें समय देखने के लिए जो तरीका बताया गया था उसे ध्यान करने के लिए कहा। सम्राट यंत्र सूर्य की साहयता से समय और ग्रहों की स्थिति की जानकारी देता है। मिस्र यंत्र से साल के सबसे छोटे और सबसे बड़े दिन को नाप सकते है और राम और जयप्रकाश यंत्र खगोलीय पिंडो के बारे में जानकारी देते है। जंतर-मंतर देखने के बाद बच्चों ने दोपहर का भोजन किया ।
नेशनल साइंस सेंटर:- जंतर-मंतर के बाद तीसरे दिन के भ्रमण का अगला पड़ाव नेशनल साइंस सेंटर था हम लोग वह पर दोपहर 12:45 पहुंचे। नेशनल साइंस सेंटर की स्थापना 1992 में हुई थी। यहाँ का म्यूजियम बहुत ही अच्छा है वहां सभी आयुवर्ग के लोगो के लिए अनेक रोचक जानकारियों का संग्रह है, बिज्ञान में रुचि रखने वालों को यहाँ अवश्य जाना चाहिए।नेशनल साइंस सेंटर में बच्चों ने सबसे पहले वाटर गैलरी से म्यूजियम को देखना शुरू किया और वहां पर जलचक्र, विभिन्न प्रकार के जल, भारत के प्रति व्यक्ति द्वारा खर्च किए जाने वाले जल तथा यूनाइटेड किंगडम और विश्व के प्रत्येक व्यक्ति द्वारा खर्च किए जाने वाले जल की तुलना को देखा साथ ही दिल्ली में जल को स्वच्छ करने के संयंत्र का मॉडल भी देखा।इसके बाद आर्ट गैलरी में पत्थरों के ऊपर नक्काशी, पृथ्वी के गति तथा झुकाव के कारण 12 राशियों में परिवर्तन का वर्किंग मॉडल देखा। जन्तर-मंतर के मिश्र यंत्र, राम यंत्र और सम्राट यंत्र के बारे में जानकारी अपनी डायरी में नोट की। इसके बाद साइंस एंड टेक्नोलॉजी हेरिटेज गैलरी में सिंधु घाटी सभ्यता के बाजार का मॉडल देखा तथा उससे संबंधित जानकारियों को अपनी डायरी में नोट किया। इसके बाद अनेक मॉडलों को देखते हुए बच्चे आगे बढ़ते गए तथा गणित से संबंधित भी अनेक मॉडल उन्होंने वहां देखें जिनके बारे में मार्गदर्शक अध्यापक सुनील डबराल ने बच्चों को विस्तार से समझाया। प्राचीन काल में किस तरीके से शल्य क्रिया की जाती थी उसके मॉडल को वह दिखाया गया था जिसके बारे में मीनाक्षी सिलस्वाल ने बच्चों को विस्तृत जानकारी दी।प्रीहिस्टोरिक लाइफ गैलरी में बच्चों ने डायनासोर, हाथी, भालू विभिन्न प्रकार के रेप्टाइल आदि के मॉडल देखें और उनके सामने लगी हुई स्क्रीन में बटन दबाकर उनकी आवाज भी सुनी तथा उनको हिलते दुलते हुए देखा। नेशनल साइंस सेंटर में बच्चों ने दो फिल्म देखी, जिनमें से एक “होलो शो” और दूसरी “एस ओ एस”। “होलो शो” में बच्चों ने पृथ्वी के बारे में देखा किस प्रकार पृथ्वी में रात और दिन होते है, सोरमंडल के ग्रहों की चाल, तथा पृथ्वी के चंद्रमा (लूना), पृथ्वी में पानी की कुल मात्रा तथा उसमे पीने योग्य पानी की मात्रा, भविष्य में पानी की कमी होने की सम्भावना को तथा एयर ट्रेफिक को भी देखा। दूसरी फिल्म “एस ओ एस” में मानव शरीर के विभिन्न तंत्रो के बारे में देखा, जिसमें पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र, कंकाल तंत्र, परिसंचरण तंत्र, उत्सर्जन तंत्र और जनन तंत्र था। इसमें सारे तंत्रों को मॉडल के माध्यम से विस्तार से समझाया गया था।
फिल्म के समाप्त होने बाद सभी लोग संग्राहलय से बाहर की और चल दिए क्योकि संग्राहलय के बंद होने का समय हो गया था लेकिन बच्चो का मन वहां से बिलकुल भी बाहर आने का नहीं हो रहा था, वो वहां और रुकना चाह रहे थे इस। प्रकार से दिल्ली के शैक्षिक भ्रमण का तीसरे दिन का भ्रमण पूरा हुआ और फिर सब होटल में वापस आ गए रात को खाने से पहले फिर सब ने एक साथ बैठकर दिन भर किए गए भ्रमण पर चर्चा की। पूरी चर्चा के दौरान भी बच्च्चे साइंस म्यूजियम के रोमांच से बाहर ही नहीं निकल पा रहे थे ।
फिल्म के समाप्त होने बाद सभी लोग संग्राहलय से बाहर की और चल दिए क्योकि संग्राहलय के बंद होने का समय हो गया था लेकिन बच्चो का मन वहां से बिलकुल भी बाहर आने का नहीं हो रहा था, वो वहां और रुकना चाह रहे थे इस। प्रकार से दिल्ली के शैक्षिक भ्रमण का तीसरे दिन का भ्रमण पूरा हुआ और फिर सब होटल में वापस आ गए रात को खाने से पहले फिर सब ने एक साथ बैठकर दिन भर किए गए भ्रमण पर चर्चा की। पूरी चर्चा के दौरान भी बच्च्चे साइंस म्यूजियम के रोमांच से बाहर ही नहीं निकल पा रहे थे ।
चतुर्थ दिवस:-यात्रा के चौथे दिन सुबह होटल से 9:00 बजे नाश्ता करने के बाद सबने अपना सामान पैक किया और अपने बैग लेकर नीचे आ गए क्योकि दोपहर बाद वापसी की यात्रा शुरू होनी थी। अत: होटल से चेकआउट करना था। चेकआउट के बाद सभी लोग जाकर बस में बैठ गए और आज के एकमात्र पड़ाव की ओर चल दिए ।
नेहरू प्लैनेटेरियम:- नेहरू प्लैनेटेरियम पहुंचकर जो तीनमूर्ति भवन में है पहले नेहरू म्यूजियम में नेहरू जी के आवास को बच्चों ने देखा। बच्चों ने म्यूजियम में सजाए गए नेहरुजी को विभिन्न देशों से मिले हुए उपहार को देखा और फिर उसके बाद नेहरू जी के शयनकक्ष को देखा जहां उनका देहांत हुआ था। नेहरू जी के अध्ययन कक्ष, बैठक और इंदिरा गांधी के कक्ष को भी देखा।इसके बाद वहां लगे हुए पुराने अखबारों की कटिंग, फोटोग्राफ, पत्र और अन्य अभिलेखों की फोटोकॉपी को भी देखा तथा भारत को आजाद कराने के लिए कैसे आंदोलन किए गए उसको अनुभव किया। इसके बाद नेहरू तारामंडल में बच्चो ने तारामंडल के बारे में जानकारी प्राप्त की.दोपहर के एक बज गए थे तो अब दिल्ली से वापस प्रस्थान करने का समय हो गया था, सभी लोग वापस बस में आकर बैठ गए और बस ऋषिकेश के लिए चल दी। रास्ते मे सबने एक ढाबे में दोपहर का खाना खाया और फिर एक बार बड़े-बड़े खेत ओर कारखानों को देखते हुए सफर आगे बढ़ता गया। बच्चो ने समय बिताने के लिए बस में अंताक्षरी खेली वे हंसी खुशी रात्रि 10 बजे ऋषिकेश पहुच गए। ऋषिकेश में रात का खाना खाने के बाद होटल में रात्रि विश्राम किया .
पंचम दिवस:- शैक्षिक भ्रमण के पंचम दिवस में प्रातः 6:00 बजे बस ने चम्बा के लिए प्रस्थान किया। प्रात: 8:30 बजे बस चम्बा पहुच गयी। वहाँ रुककर नास्ता किया गया और फिर बस नई टिहरी के लिए आगे बढ़ी। भौनाबागी पहुचने पर रा.उ.प्रा. वि. भौनाबागी के बच्चे अपने अध्यापक के साथ वहाँ बस से नीचे उतर गए तथा अपने अन्य साथियों को अलविदा कहकर अपने घर को चल दिये। बस फिर आगे बढ़ी ओर 11 बजे टिपरी पहुँची। सबने मिलकर निर्णय किया कि आगे का सफर ट्राली से तय किया जाए क्योकि कई बच्चो ने कभी ट्राली से सफ़र नहीं किया था ओर सब टिपरी में बस से उतर गए और ट्राली में बैठ कर मदननेगी पहुचे। वहां से टाटा सूमो द्वारा आगे का सफर तय करते हुए सभी पड़िया पहुचे।
पंचम दिवस:- शैक्षिक भ्रमण के पंचम दिवस में प्रातः 6:00 बजे बस ने चम्बा के लिए प्रस्थान किया। प्रात: 8:30 बजे बस चम्बा पहुच गयी। वहाँ रुककर नास्ता किया गया और फिर बस नई टिहरी के लिए आगे बढ़ी। भौनाबागी पहुचने पर रा.उ.प्रा. वि. भौनाबागी के बच्चे अपने अध्यापक के साथ वहाँ बस से नीचे उतर गए तथा अपने अन्य साथियों को अलविदा कहकर अपने घर को चल दिये। बस फिर आगे बढ़ी ओर 11 बजे टिपरी पहुँची। सबने मिलकर निर्णय किया कि आगे का सफर ट्राली से तय किया जाए क्योकि कई बच्चो ने कभी ट्राली से सफ़र नहीं किया था ओर सब टिपरी में बस से उतर गए और ट्राली में बैठ कर मदननेगी पहुचे। वहां से टाटा सूमो द्वारा आगे का सफर तय करते हुए सभी पड़िया पहुचे।
इस प्रकार से इस पांच दिवसीय शैक्षिक भ्रमण में बच्चो को जो अनुभव हुए है वो निश्चित रूप से उनके बौद्धिक स्तर को बढ़ायेंगे। इस भ्रमण से बच्चो को ये भी महसूस हुआ है कि पाठयपुस्तके बोझ न होकर एक महत्वपूर्ण जानकारियों का खजाना होती है । इस प्रकार के शैक्षिक भ्रमणों से किताबो से एक जो नीरसता बच्चो के मन में आ जाती है वो उत्सुकता में बदल जाती है। शिक्षा विभाग ने छात्रहित को ध्यान में रखते हुए शिक्षा देने को केवल कक्षाकक्ष तक सीमित न रखकर बाहरी परिवेश से जोड़ने का जो यह अभिनव प्रयास शुरू किया है निश्चित ही उसका बहुत ही साकारात्मक प्रभाव बच्चो के ऊपर पड़ेगा। मै सभी बच्चो की तरफ से जिला परियोजना कार्यालय को धन्यवाद देना चाहूंगी कि उन्होंने इस शैक्षिक भ्रमण के लिए उनको मौका दिया।
आख्या - मीनाक्षी सिलस्वाल, सहायक अध्यापिका
आख्या - मीनाक्षी सिलस्वाल, सहायक अध्यापिका
इस तरह के शैक्षिक भ्रमण वास्तव में अनुभवों का खजाना साबित होते हैं... ये मस्तिष्क को तरोताज़ा, व उत्साहित करते हैं, फिर उसमें ज्ञानरूपी एक स्थायी चलचित्र बन जाता है... जो जीवनपर्यन्त रोमांचित करता रहता है... भ्रमण दल के प्रायोजक एवं मार्गदर्शक की भूमिका निभाने वाले सभी विद्वान जनों की हार्दिक शुभकामनाएं...👍💐💐
ReplyDeleteसराहनीय व अनुकरणीय ।
ReplyDeleteA very well organized trip to satisfy the curiosity of young generations.
ReplyDeleteप्रतीक्षा उस दिन की,जब राजकीय विद्यालयों में पढ़ने वाले सभी छात्र छात्राओं को यह लाभ मिलेगा।भ्रमण दल को साधुवाद।
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