सुशील डोभाल, प्रवक्ता अर्थशास्त्र रा.इ.का. जाखणीधार टिहरी गढ़वाल |
संख्याओं के रूप में व्यक्त किए गए आर्थिक तथ्य आकंड़े कहलाते हैं। आँकड़ों के संग्रह का उद्देश्य किसी समस्या और उसके कारणों को समझ कर उसकी व्याख्या एवं विश्लेषण करना है। प्राथमिक आँकड़ों का संग्रह सर्वेक्षण आयोजित करके किया जाता है। सर्वेक्षणों के कई चरण होते हैं, जिन्हें सावधानी पूर्वक नियोजित करने की आवश्यकता होती है। ऐसी अनेक संस्थाएँ हैं, जो इन सांख्यिकीय आँकड़ों का संग्रह, संसाधन, सारणीयन, तथा प्रकाशन करती हैं। इनका प्रयोग द्वितीयक आँकड़ों के रूप में किया जा सकता है। आँकड़ों के श्रोत का चुनाव एवं इनके संग्रह की विधा अध्ययन के उद्देश्य पर निर्भर करती है।
पुनरावर्तन▪आँकडे़ ऐसे साधन हैं, जो सूचनाएँ उपलब्ध कराकर किसी भी समस्या के विषय में ठोस निष्कर्ष पर पहुँचने में सहायता देती हैं।
▪प्राथमिक आँकड़े व्यक्ति द्वारा स्वयं एकत्र की गई सूचनाओं पर निर्भर होते हैं।
▪सर्वेक्षण वैयक्तिक साक्षात्कारों, डाक द्वारा प्रश्नावलियाँ भेजकर तथा टेलीफोन साक्षात्कार द्वारा किये जा सकते हैं।
▪जनगणना के अंतर्गत समष्टि की सभी इकाइयों/व्यष्टियों को सम्मिलित किया जाता है।
प्रतिदर्श, समष्टि से चयनित किया गया एक छोटा समूह होता है, जिसके द्वारा संबंधित सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती हैं।▪यादृच्छिक प्रतिचयन के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को सूचना प्रदान करने हेतु चुने जाने के लिए समान अवसर दिया जाता है।
▪प्रतिदर्श त्रुटियाँ वास्तविक समष्टि तथा इनके आकलन के बीच अंतर के कारण पैदा होती हैं।
▪अप्रतिचयन त्रुटियाँ आँकड़ों के अर्जन के दौरान पैदा हो सकती हैं, जो उत्तर न देने के कारण, या चयन में पूर्वाग्रह के कारण हो सकती हैं।
▪राष्ट्रीय स्तर पर ‘भारत की जनगणना’ तथा ‘राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन’ दो महत्वपूर्ण संस्थाएँ हैं, जो विभिन्न महत्वपूर्ण आर्थिक एवं सामाजिक मुद्दों पर आँकड़ों का संग्रहण, संसाधन तथा सारणीयन करती हैं।
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